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________________ आश्वासः] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [६६३ विमला-रावण का धनुष एक ही समय में बाणों के चढ़ाने, खींचने और छोड़ने से एक ही समय में विभिन्न रूप का दिखायी पड़ता था। बाण चढ़ाने पर ( दोनों किनारे के भाग सम होने से ) अन्य अवस्था में, वेग से खींचने पर ( दोनों किनारे के भागों के झुकने से ) पृष्ठभाग उभर आने पर अन्य अवस्था में, बाण छोड़ने पर उदर (भीतरी भाग ) के लघु होने से अन्य अवस्था में अवस्थित हो जाता था ।।६७।। अथ रामस्यापि तदाहसइसंधिप्रणिन्तसरं अवङ्गदेससइलग्गजीवाबन्धम् । दीसइ सहमुक्कसरं सइमण्डलिअविअडोअरं रामघणुम् ॥६॥ [ सदासंधितनिर्यच्छरमपाङ्गदेशसदालग्नज्याबन्धम् । दृश्यते सदामुक्तशरं सदामण्डलितविकटोदरं रामधनुः ॥] रामधनुर्दश्यते । कीदृशम् । सदा संधिताः सन्तो निर्यान्तः शरा यस्मादिति संधानसम कालमेव निर्गमनमुक्तम् । यद्वा-सदासंधितशरं सदानिर्यच्छरमिति व्यवस्थाद्वयकथनम् । एवम्-अपाङ्गदेशे सदालग्नज्याबन्धं सदैवाकर्णकृष्टमित्यर्थः । एवम्-सदामुक्तशरमसंधानदशायामेव शरशून्यमित्यर्थः । एवम्-सदामण्डलितं मण्डलाकारं सद्विकटोदरं तुच्छोदरं त्यक्तशरत्वात् । यद्वा-सदा मण्डलितोदरं सदा विकटोदरं चेत्यर्थः। तथा च प्रेक्षकेषु येन धनुषा यावस्था प्रतिपन्ना तदृष्टिस्तामेवाग्रहीदिति हस्तलाघवमुक्तम् ।।६८।। विमला-(प्रत्येक प्रेक्षक की दृष्टि ने एक साथ राम के धनुष की विभिन्न अवस्था को देखा, क्योंकि ) उन' (राम) का धनुष सदा बाण से युक्त रहता, उससे सदा बाण निकलते रहते, उसकी डोरी सदा नेत्र के कोने तक पहुंची रहती, उससे सदा बाण छूटते रहते, उसका भीतरी भाग सदा मण्डलाकार रहता और सदा लघु रहता ।।६८॥ अथोभयसाधारणं कौशलमाहवामो पसारिमच्चिअ दाहिणहत्थो अवङ्गदेसणिवडियो। चावेसु अ तह णिमिआ ताणं दीसन्ति अन्तरालेसु सरा ॥६६॥ [ वामः प्रसारित एव दक्षिणहस्तोऽपाङ्गदेशनिपतितः । चापयोश्च तथा नियोजितास्तयोदृश्यतेऽन्तरालेषु शराः॥] तयो रामरावणयोरुभयोरपि वामो हस्तः प्रसारित एव दण्डाकार एव दृश्यते, उत्थापितधनुष्ट्वात् । दक्षिणस्तु अपाङ्ग देशे निपतित एव, कृष्टधनुष्ट्वात् । तथा चापयोश्च नियोजिता: संधिताः सन्त: शरा अन्तरालेषु लक्ष्यलक्षकयोस्तयोरेव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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