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________________ ६५८] सेतुबन्धम् [पञ्चदश धरण्यां करं निवेश्य राघवं भणति । किंभूतं करम् । तत्क्षणे विलगितेन गृहीतेन धनुषा गर्भितम् । पूर्णाभ्यन्तरमित्यर्थः । मुष्टिना धृतत्वादिति भावः ।।५५॥ विमला--कवच-धारण का कार्य कर चुकने पर राम से, नील-सुग्रीवसमन्वित लक्ष्मण ने तत्काल गृहीत धनुष से गर्भित हाथ को भूमि पर रख कर ( वक्ष्यमाण वचन ) कहा ॥५५॥ त्रिभिर्विज्ञप्तिवाक्यमाह वीसमउ तुम्ह चावं अडणिमुहप्फिडिअसिढिलजीआबन्धम् । अइरा पेच्छ विराअं ममम्मि गोले व्व रविसुए व्व दहमुम् ।।५६।। [विश्राम्यतु तव चापमटनिमुखस्फेटितशिथिलज्याबन्धम् । अचिरात्पश्य विशीर्ण मयि नीले वा रविसुते वा दशमुखम् ॥ ] हे राम ! तव चापम् अटनिमुखस्फेटित उत्तारितः सन शिथिलोऽस्तब्धो ज्याबन्धो यत्र तथा सत् विश्राम्यतु सुखीभवतु । प्रान्तादुत्तार्य धनुष्येव ज्या निवेश्यत इति संप्रदायः । तर्हि रावणस्य का वार्तेत्यत आह-मयि नीले वा रविसुते वा सति विशीर्ण विशकलितप्रत्येकावयवं दशमुखं पश्य । समर्थे सेवके सति प्रभुणा न युध्यत इति भावः ।।५६।। विमला--धनुष की डोरी अटनि ( अग्रभाग, जहाँ डोरी बांधने के लिये गड्ढा बना होता है) से उतार दी जाय और इस प्रकार शिथिल डोरी वाला होकर मापका धनुष विश्राम करे। मेरे या नील के या सुग्रीव के रहते, छिन्न-भिन्न रावण को आप देखें ॥५६॥ तव योग्योऽपि नायमित्याहगुरुअम्मि कुणसु कोवं लहुए दहमुहवहम्मि मुअसु अमरिसम् । तुङ्गं तटं गिसुम्मइ ण अ गइवप्पं समलि व्व वणगो ॥५७।। [ गुरौ कुरुष्व कोपं लघौ दशमुखवधे मुञ्चामर्षम् । तुङ्गं तटं निपातयति न च नदीवप्रं समस्थली वा वनगजः ।।] हे राम ! गुरावस्मदाद्यसाध्ये कोपं स्वव्यापाराय कुरुष्व । लघौ सुकरत्वादस्मदादिसाध्ये दशमुखवधेऽमर्ष मुञ्च। अपकर्षहेतुत्वादन्यथासिद्धत्वादिति भावः । अर्थान्तरं न्यस्यति-बनगजस्तुङ्गमुच्चं तट पर्वतादेनिपातयति न च नदीवप्रं वेलादिरूपं समस्थली समभूमि वा निपातयतीत्यर्थस्तेषामनुच्चत्वेन बुद्धयानारोहा दिति भावः ।।५७।। विमला-कोई ऐसा महान शत्रु हो जो हम सब के लिये असाध्य हो, उस पर आप क्रोध करें। दशमुख का वध तो बहुत छोटा-सा काम है, इसके लिये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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