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________________ [४७ आश्वासः] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् होती है तथा विद्रुम के समान लाल दन्तक्षत से उसके आनन्द की कान्ति बढ़ जाती है एवं हाथ से केश का आकर्षण आदि होने से उसके केश-कुसुम मसल उठते हैं ॥६४।। सिप्पिउडमउलिअच्छि लगाहरभन्तरेसु परिवड़ढन्तम् । मणराप्रपरिवि प्राअण्णन्ति व किंणरुग्गीअरवम् ॥६॥ इन सिरिपवरसेणविरइए दसमुहवहे महाकन्वे पढमो प्रासासो समत्तो। [शुक्तिपुटमुकुलिताक्षी लतागृहाभ्यन्तरेषु परिवर्धमानम् । अनुरागपरिस्थापितमाकर्णयन्तीमिव किन्नरोद्गीतरवम् ॥] इति श्रीप्रवरसेनविरचिते दशमुखवधे महाकाव्ये प्रथम आश्वासकः समाप्तः । किन्नराणामुद्गीतरूपं रवमाकर्णयन्तीमिव । पुनः कीदृशीम् । शुक्तिपुट एव मुकुनितमक्षि यस्यास्ताम् । पूर्वोक्तभिदुरशुक्तिपुटानां मुकुलितनयनतुल्यत्वादित्यर्थः । गीतरवं कीदृशम् । लतागृहाणामभ्यन्तरेषु परिवर्धमानम् । प्रतिशब्दोपचयादिति भावः । एवमनुरागं प्रति नाटकार्णाटादिराग परि सर्वतोभावेन स्थापितं मूछनां प्रापितम् । अनुरागण गीतप्रीत्या वा परिस्थापितं यथोचितश्रुतिग्रामादिषु प्रापितम् । भन्योऽपि गीतश्रवणकाले मुकुलितचक्षुर्भवतीति ध्वनिः । अथ चानुरागपदचिह्नितत्वादाश्वासक विच्छित्तिरप्युक्ता ॥६५॥ रामप्रस्थानदशया' रामदासप्रकाशिता। रामसेतुप्रदीपस्य पूर्णाभूत्प्रथमा शिखा । विमला-अनुराग से परिस्थापित (सकल अङ्गों के साथ सब प्रकार यथोचित रोति से प्रस्तुत किये गये), लतागृह के भीतर (प्रतिध्वनि के कारण) परिवर्धमान, किनरों के उच्च स्वर से गाये गये गीत के रव को सुनती-सी (आनन्दविभोर हो जाने से ) उस समुद्र-वेला का ( आधा खुला और आधा मुदा ) शुक्ति-सम्पुटरूप नेत्र मुकुलित हो गया था ॥६५।। इस प्रकार श्रीप्रवरसेनविरचित वशमखवध महाकाव्य में प्रथम आश्वास को 'विमला' हिन्दी व्याख्या समाप्त हुई। १. दशा दीपवतिरपि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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