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________________ आश्वासः] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [६०१ हुतवहो येषु ते। एतेन शराणामाग्नेयत्वमुक्तम् । एवम्-विष धरैः सर्प रेचितानां शून्यीकृतानां बिलमुखानां विवराणां प्रतिच्छन्दाः प्रतिरूपाः । तान्यपि दीर्घाणि क्वचित्क्वचिल्लग्न विषानलानीति शराणामपि सर्पसमानशीलत्वेन घातकत्वमुक्तम् ॥८॥ विमला-राम के बाण ( वेग से जाने के कारण) दिखायी नहीं दिये, केवल राक्षसों के शरीर में उनके (आर-पार) निकलने के मार्ग ही दिखायी देते थे, जो (बाणों के आग्नेय होने के कारण ) स्थान-स्थान पर अनल से संपृक्त होने के कारण विषधर सौ से शून्य किये गये बिलमुख विवर के समान हो रहे थे ॥ ८॥ पुनस्तदेवाहउक्करिसन्तस्स करे पत्थन्तस्स हिअए रसन्तस्स मुहे । दोसन्ति णवर पडिआ णिबद्धसिरपडणसूइ रामशरा ॥ ९ ॥ [ उत्कर्षतः करे प्रार्थयमानस्य हृदये रसतो मुखे । दृश्यन्ते केवलं पतिता निबद्धशिरःपतनसूचिता रामशराः ॥] रामशरा उत्कर्षतः शरानाकर्षतः परस्य कर एव, प्रार्थयमानस्य कपिरयमित्थं मारणीय इति प्रतिसंदधानस्य हृदय एव, रसतश्छिन्धि ताडयेत्यादि शब्दं कुर्वाणस्य मुख एव, केवलं पतिता दृश्यन्ते, न तु गृह्यमाणा गच्छन्तो वा । तथा च रक्षोभिः कपिव्यापादनाय कायिको मानसो वाचिको वा पदा य एव व्यापारः कृतस्तदा तमेव प्रतिरुद्धवन्त इति रामशराणां मन्त्रमयदेवताधिष्ठान (त्व)मुक्तम् । किं भूताः । निबद्धानां व्यूहे संयोजितानां वीराणां शिरःपतनेन सूचिताः प्रकाशिताः। तथा च व्यूहतिवीरशिरःपतनैरनेन यथा रामशरो गत इति केवलमनुमीयते, दृश्यते पुनर्लक्ष्यकरादिस्थानलग्न एवेति रामस्य कृतहस्तत्वमुक्तम् । यदा-निबद्धं शिरस्त्राणादिसंबद्धं यच्छिरस्तत्पतने सूचिताः सुष्ठ योग्या इति स्वरूपनिर्वचन मिति वयम् । संप्रदायस्तु निबद्धं कबन्धसंगतं यच्छिरस्तत्पतनेन सूचिता इति व्याचष्टे ॥६।। विमला-राम के बाण, बाण खींचते हुये शत्रु के हाथ पर ही, (किसी बानर को ) मारने के लिये सोचते हुए शत्रु के हृदय पर ही, उत्तेजक वचन बोलते हुये शत्रु के मुख पर ही केवल पतित दिखायी दे रहे थे और व्यूह में संयुक्त किये गये वीरों के सिरों के गिरने से ही सूचित होते थे ( उन्हें धनुष पर चढ़ाते, छोड़े जाते तथा लक्ष्य पर लगते हुये कोई नहीं देख पाता था ) ।।६।। तमेवाहजो जत्थ च्चिस विठ्ठो सुओ हि जस्स विलिओ विणिणामो। चलिओ अ जो जहि चिअ तस्स तहि चेन विडिप्रा रामसरा ।१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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