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________________ ५८० ] सेतुबन्धम् [त्रयोदश अथ कपीनां पतनमाहदूसहसहिप्पहरा दुवोज्झविलग्गसमरणिवूढभरा। ओच्छण्ण दुग्गमपहा कअदुक्करपेसणा पडन्ति पवङ्गा ।।६३॥ [ दुःसहसोढप्रहारा दुर्वहविलग्नसमरनिव्यूंढभराः । अवक्षुण्णदुर्गमपथाः कृतदुष्करप्रेषणाः पतन्ति प्लवङ्गाः ॥] दुःसहाः सन्तः सोढा: प्रहारा यैः । एवम् -दुर्वहस्य दुःखनिर्वाहनीयस्य विल. ग्नस्योपगतस्य समरस्य नियूंढो निर्वाहितो भरो यैः । शत्रूणां जयात् । एवमअवक्षुण्ण आक्रान्तो दुर्गमः परागम्यः पन्था यैः। अथ च कृतं निष्पादितं दुष्करमसाध्यं प्रेषणं राजाज्ञा यः । एवंभूता अपि प्लवङ्गाः पतन्ति म्रियन्त इति रणस्य घोरत्वमुक्तम् ।।६३॥ विमला-यद्यपि वानरों ने दुःसह प्रहारों को झेल लिया था, भूतपूर्व अनेक दुर्वह संग्रामों के उत्तरदायित्व का निर्वाह भी किया था, दुर्गम पथ को आक्रान्त भी कर लिया था तथा राजा सुग्रीव की दुष्कर आज्ञा को निष्पन्न भी कर लिया था तथापि वे ( इस घोर रण में ) गिर रहे थे ।।६३।। अथ युद्धसमृद्धिमाहबन्धुवहबद्धवेरं सहस्सपूरणकबन्धजणिआमोअम् । वड्ढइ भडदिण्णरसं भुजपव्वलपहुअवीरपडणं जुज्झम् ।।६४॥ [ बन्धुवधबद्ध वैरं सहस्रपूरणकबन्धजनितामोदम् । वर्धते भटदत्तरसं भुजप्रबलप्रभूतवीरपतनं युद्धम् ॥] बन्धूनां पितृभ्रातृपितृव्यादीनां वधेन बद्धं वैरं यत्र । एवम्-सहस्रस्य पूरा यस्मात्तेन चरमेण क बन्धेन जनित आमोदो नर्तनं यत्र । सहस्रशूरपतने एक कबन्धो नत्यतीति प्रसिद्धिः । एवम्-भटेभ्यो दत्तो रस: प्रीतिर्येन । एवम्भुजाभ्यां प्रबलानां प्रभूतानामसंख्यानां वीराणां पतनं यत्र । तादृशं युद्धं वर्धते प्रकर्ष गच्छतीत्यर्थः ॥६४॥ विमला-युद्ध में बन्धुओं का वध होने से वैर बंध गया ( दृढतर हो गया ) सहस्र शूरों का पतन होने पर कबन्ध ( विना सिर का धड़ ) ने नृत्य कर आमो उत्पन्न कर दिया, उस (युद्ध ) ने वीरों को लड़ने का उत्साह दिया, भुजावं से असंख्य वीरों का उसमें पतन हुआ। इस प्रकार वह ( युद्ध) अपने चरा उत्कर्ष पर पहुँच चुका था ॥६४।। अथ शिवानां संभारमाह मणिबनधागअपुजिप्रसंणाहच्छेअवलअविण्णावेढम् । णेउं ण चएइ सिआ मूलुच्छिष्णगरु किसिम रस्स भुजम् ॥६५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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