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________________ ५६२ ] सेतुबन्धम् [त्रयोदश रथसंचाराभावात् । तथा-मुखे शुष्को यः फेनस्तेन निभृतं मन्दं हृषितं येषां ते तुरगा यत्र । मुखशोषे स्फुटं शब्दानिष्पत्तेरिति भावः ॥२४॥ विमला-( वानरों के संचार से ) हाथी तितर-बितर हो गये, किन्तु हाथीवानों ने उन्हें पुनः पूर्ववत् स्थित किया। पैदल चलने वाले वीरों को सामने से रोक दिया गया, अतएव वे पीछे हट कर ( रोकने वालों को आवेष्टित करने के लिये ) मण्डल बनाते थे। रुधिर से रथों का मार्ग रुक गया। मुख में सूखे फेन के कारण घोड़ों के हिनहिनाने का शब्द भी धीमा निकलता था ॥२४॥ रिउपहरणपरिमोसिअसाहक्काररवगन्भिणपडन्तसिरम् । गिभिण्णपहरमुच्छि प्रवअणब्भन्तर 'विदाअभडचक्कारम् ॥२५॥ [रिपुप्रहरणपरितोषितसाधुकाररवभितपतच्छिरम् । निभिन्नप्रहारमूच्छितवदनाभ्यन्तरविशीर्णभटचुक्कारम् ॥] एवम्-रिपूणां प्रहारेण परितोषितानां वीराणामस्त्रकण्ठस्पर्शसमकालीन: साधुकाररवो गभितो गर्भस्थो यत्र तथाभूतं सत्पतच्छिरो यत्रेति प्रहारलाघवमुक्तम् । एवम्-निर्भिन्नेन दृष्टेन प्रहारेण मूच्छितानाम् । प्राकृतत्वादत्राकर्षणाद्भटानां वदनाभ्यन्तरे विशीर्णो मूर्च्छया मुखमुद्रणादस्फुटीभूतश्चुक्कारोऽर्थात्सिहनादो यत्र । मूर्च्छितेन मूर्च्छया विशीर्णो भटानां चुक्कारो यत्रेति वा । चुक्कारशब्दो देश्यां शब्दवाची ॥२५॥ विमला-शत्रुओं के प्रहार के परितुष्ट किये गये वीरों का उच्चारित साधुशब्द मुख में ही रह जाता था और तत्काल ही सिर गिर पड़ता था। अचूक प्रहारजन्य मूर्छा से भटों का सिंहनाद मुख के भीतर ही विशीर्ण हो जाता था ॥२५॥ सेलपहरुविआइअदुक्खववविअहत्थिपत्थिअजोहम् । भग्गधअचिह्णविमुहिमपणणिअप्रभडदुक्खणज्जन्तरहम् ॥२६।। [ शैलप्रहारोद्वेदितदुःखव्यवस्थापितहस्तिप्रार्थितयोधम् । भग्नध्वजचिह्नविमुषितप्रनष्टनिजकभटदुःखज्ञायमानरथम् ॥] एवम्-शैलप्रहारोद्वेदितैः, अत एव दुःखेन व्यवस्थापितैः स्थिरीकृतैर्हस्तिभिः प्रार्थिता रुध्यमाना योधा यत्र । एवम्-भग्नैर्ध्वजचिह्न: पताकाभिर्विमुषितवच्चोरितवत्प्रनष्टा अदृश्या अलक्ष्याः सन्तो निजकभटानां दुःखेन ज्ञायमाना रथा यत्र तादृशम् ॥२६॥ १. 'विसट्ठ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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