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________________ आश्वासः] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [५५१ विमला--वे योद्धा एक-दूसरे से ऐसे भिड़ गये कि प्रहार की लालसा से उन्हें अपने स्थान से कुछ पीछे हटना पड़ता था (क्योंकि बिल्कुल निकट से ठीक प्रहार नहीं हो सकता)। आगे वाले वीर को यदि शत्रु ने प्रहार कर मार गिराया तो पीछे वाला ( स्थानाभाव के कारण ) उसके मृतदेह के ऊपर ही पैर रख कर शत्रु के सामने पहुँचने के लिये शीघ्रता करता था ॥२॥ अथ भटानां शीघ्रकारितामाह जह हिअहि ववसि रप्रकलुसेहि णअणेहि जह सच्चविअम् । रप्रणि अरेहि रणमुहे तह पडिवक्वम्मि पहरणं ओहरि अम् ।।३।। [ यथा हृदयैर्व्यवसितं रजःकलुषाभ्यां नयनाभ्यां यथा सत्यापितम् । रजनीचरै रणमुखे तथा प्रतिपक्षे प्रहरणमवपातितम् ॥] रणमुखे रजनीचरैर्यथा हृदयैर्व्यवसितमिदमस्त्रमित्थं व्यापारयितव्यमिति चिन्तितं तदनुपदमेव रजोभिः कलुषाभ्यामीषन्मुकुलिताभ्यां नयानाभ्यां यथा सत्यापितमयमत्र प्रहर्तव्य इति निर्धारितं तथा तत्समकालमेव रजोमुद्रितदृष्टिनापि प्रतिपक्षे प्रहरणं खड्गाद्यवपातितं प्रक्षिप्तमिति कायव्यापारस्य हृदयादिव्यापारतुल्यतया सत्त्वोत्कर्ष उक्तः ।।३।। विमला--युद्ध में रजनीचरों ने ज्यों ही हृदय से ऐसा सोचा कि इस अस्त्र को इस प्रकार चलाना है, त्यों ही धूल से मुंदे नेत्रों से यह निर्धारित किया कि इस पर प्रहार करना है तथा उसी समय उस पर अस्त्र चला दिया ।।३।। भटानां तेजःप्रकर्षमाहपअलम्भन्भहिअजवा मुठ्ठिपरिवि अणिप्पअम्पक्खग्गा । सच्चविअलद्धलक्खा पढमपहारविसआ ण भज्जन्ति भडा ॥४॥ [पदलम्भाभ्यधिकजवा मुष्टिपरिस्थापितनिष्प्रकम्पखड्गाः । सत्यापितलब्धलक्ष्याः प्रथमप्रहारविषया न भज्यन्ते भटाः ॥] पदलम्भेन परव्यूहरूपस्थानप्राप्त्याभ्यधिकवेगाः, तथा मुष्टौ परि सर्वतोभावेन स्थापितत्वेन स्थिरखड्गाः, तथा सत्यापितो निजव्यूहादेव हन्तव्यत्वेन स्थिरीकृतः पश्चादागत्य लब्धो लक्ष्यः शत्रुयैस्तथाभूता भटा राक्षसा: प्रथमप्रहारस्य विषया अपि यावदमीभिः प्रहारः क्रियते तावत्स्थायिभिरेव लक्ष्यैः कपिभिर्वृक्षादिना प्रहृता अपि न भज्यन्ते नापसरन्ति, किंतु प्रतिप्रहारं प्रयच्छता संनिधौ कृतवेगेन लब्धो यावत्प्रतिक्रियते तावदेव कृतप्रहारोऽपि कपिखड्गादिना ताडित इत्यर्थः । यद्वा प्रथमं निजव्यूहादेव कपिभिः शिलादिना ताडिता राक्षासास्तदनु अनेनाहं ताडित इति क्रुधा सत्यापितं लक्ष्यं कपि वेगेनागत्य लब्धा न भज्यन्ते न पराजयन्ते किंतु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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