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________________ माश्वासः] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [५३७ विमला-युद्धार्थ उत्साह से वानरों ने जिस समय गमन किया उस समय जाँघों के वेगवायु से विशीर्ण शैलशिखरों से स्खलित भग्न वृक्ष (जो उसी तीव्र वायु से आक्रान्त होने से नहीं गिरे थे) उसी मार्ग से उनके आगमन पर (वेगवायु के निवृत हो जाने से ) गिर गये ।।७२।। अथ रावणस्य गजव्यूहर नामाह णहमलसमुट्ठिएहिं पाआरन्तरिअधअवडेहिं पवङ्गाः । सूएन्ति गडिअवारणर इसघडाबन्धसंठिए रअगिपरे ।।७३।। [ नभस्तलसमुत्थितैः प्राकारान्तरितध्वजपटैः प्लवङ्गाः । सूचयन्ति गुटितवारणरचितघण्टाबन्धसंस्थितान्रजनीचरान् ॥] प्लवङ्गा गुटितानां कृतसंनाहानां वारणानां रचितेषु घण्टाबन्धेषु संस्थितान्रजनीचरान् सूचयन्ति तर्कयन्ति । कैः। नभस्तले ममुत्थितः प्राकारान्तरितानां ध्वजानां पटैः । तथा च प्राकारव्यवधानाददृष्टानप्युत्थितपताकासमूहेन गजाननुमायानुमिन्वन्तीत्यर्थः ।।७३॥ विमला-यद्यपि ध्वज ( दण्ड ) प्राकार की ओट में अदृश्य थे तथापि उनके पट गगनतल में उठे फहरा रहे थे । उन्हीं से वानरों ने यह अनुमान कर लिया कि रजनीचर सन्नद्ध गजों के रचित घण्टाबन्धों में संस्थित हैं । ७३॥ अथ कपीनां परस्परालापमाहभमइ पवणाणु सारी पवअबलस्स खलिउटिअपउच्छलिओ। दुमभङ्ग-सद्दविसमो महिणीहरिअगरुप्रो समुल्लवणरओ।।७४।। [ भ्रमति पवनानुसारी प्लवगबलस्य स्खलितोत्थितपदोच्छलितः । द्रुमभङ्गशब्दविषमो महीनिहूदितगुरुकः समुल्लपनरवः ॥] प्लवगबलस्य समुल्लपनरवो निशाचरागमनशङ्काजनितयुद्ध व्यवस्थानुकूलपरस्पराभाषणकोलाहलः पवनानुसारी सन् भ्रमति । वेगजनितः साहजिको वा वायुयंदा यद्दिशि वाति तदा तत्रायमपीत्यर्थः । किंभूतः । प्रथमं स्खलितं त्वरावशाद्भूमावेव विपर्यस्तपतितम्, अथोत्थितमुत्थापितं यत्पदं तस्मादुच्छलितः संचारशब्दावृद्धया ऊवं परितश्च प्रापित इत्यर्थः । अथास्त्रार्थ द्रुमाणां भङ्गाच्छब्देन विषमो नीचोच्चः । तदनु मह्या निह दितेन गुरुको मांसलः ॥७४।। विमला-वानरों ने युद्धव्यवस्था के विषय में परस्पर जो वार्ता की उसका कोलाहल उनके स्खलित एवम् उत्थित पद के संचारशब्द से बढ़ कर चारो ओर पहुँच गया। ( अस्त्र के रूप में प्रयुक्त करने के लिये ) वृक्षों के टूटने के शब्द से वह ( कोलाहल ) विषम हो गया, तत्पश्चात् पृथिवी के शब्द से और महान् हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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