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________________ आश्वास: ] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [ ५२७ बहुत समय से बढ़ा हुआ था किन्तु इस समय ( युद्ध के ) भय से उद्विग्न हृदय में मान टिक न सका, और वे ( भावी वियोग को शंका से ) प्रियतमों को सुरत कार्य में नियुक्त होने की प्रेरणा देने लगीं ॥५०॥ जह जह पिआइ रुब्भइ संभाविअसामिआवमाणब्भहिअम् । तह तह भस्स वड्ढइ संमाणि मच्छरेण समरुच्छाहो || ५१ ॥ । [ यथा यथा प्रियया रुध्यते संभावितस्वाम्यपमानाभ्यधिकम् । तथा तथा भटस्य वर्धते संमानितमत्सरेण समरोत्साहः ॥ ] भटस्य समरोत्साहः प्रियया यथा यथा रुध्यते निवर्तनेनालिङ्गनचुम्बनादिरसान्तरापादनेन वा विघटते तथा तथा संभावितेन तर्कितेन स्वामिनोऽपमानेनाभ्यधिकं यथा स्यादेवं संमानितेनादृतेन शत्रुं प्रति मात्सर्येण सह वर्धते अगमने सति स्वामी रावणोऽपमानं कुर्यादित्युत्साहमात्सर्ययोराधिक्यमिति भावः ॥ ५१॥ विमला – प्रिया वीरों के समरोत्साह को ( आलिङ्गन - चुम्बनादि से रसान्तर की उत्पत्ति कर ) ज्यों-ज्यों विघटित करती, रावण द्वारा किये जाने वाले अपमान तथा शत्रु के प्रति आहत मत्सर से वह त्यों-त्यों अत्यन्त अधिक बढ़ता जाता था ॥ ५१॥ अथ राक्षसानां प्रयाणमाह दहाकरेहि धरिमा खलिया पणएण पेम्मराएण हिश्रा । माणेण ववविआ रणपरिओसेण निग्गआ रअणिअरा ॥५२॥ [ दयिताकराभ्यां धृताः स्खलिताः प्रणयेन प्रेमरागेण हृताः । मानेन व्यवस्थापिता रणपरितोषेण निर्गता रजनीचराः ॥ ] प्रथमं दयितानां कराभ्यां धृताः, अथ प्रणयेन स्खलिता विहतगमनोद्यमाः, तदनु प्रेम्णा रागेण च हृता दयिताभिमुखीकृता एवंभूता अपि रजनीचरा मानेनाहंकारेण व्यवस्थापिता गमनाय स्थिरीकृताः सन्तः संभोगापेक्षया रणे परितोषेण पक्षपातेन निर्गता इति प्रस्थाने निवर्तनेनामङ्गलमुक्तम् । प्रणय प्रेमरागाणामुत्तरोत्तरमुत्कर्षेण भेदः ।। ५२ ।। विमला - निशाचरों को कामिनियों ने अपने हाथों से पहिले पकड़ा, तदनन्दर प्रणय से उन्हें जाने से रोक दिया, तत्पश्चात् प्रेम एवं राग से अपनी ओर उन्हें आकृष्ट कर लिया तथापि वे अहङ्कारवश जाने का निश्चय कर ( संभोग की अपेक्षा ) रण में परितोष होने के कारण निकल पड़े ॥५२॥ कियद्भिः संनहनं न कृतमित्याह सुरसमरुच्चच्छन्दा कइमसीसलहुआ इम्मि रणभरे । लज्जन्ति संगहिउं ण अविसहन्ति पसरं परस्स णिसिमरा ॥५३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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