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________________ ५२४] सेतुबन्धम् [ द्वादश सम्बद्ध हो गयीं । इस प्रकार उसके भुजयुगल ऊँचे मणिनिर्मित पुरद्वारों के समान सुशोभित हुये ( दो भुजायें द्वार के दोनों बगल के स्तम्भ के समान और अंगुलियाँ ऊपर स्थित कंगूरे के समान हुई )। तदनन्तर उन्हें तिरछे लाकर करवट लेते हुये रावण ने अपनी शय्या के उत्सङ्ग में छोड़ दिया ।।४४।। अथ युद्धोद्योगसूचकं रावणवाद्यरवमाहअह भ प्रचलिएरावणभज्जन्तक्खम्भदिण्णसुरसंखोहम् । आहम्मिउं पप्रत्तं रणसंणाहपिसुणं दशाणणतूरम् ।।४।। [अथ भयचलितैरावणभज्यमानस्तम्भदत्तसुरसंक्षोभम् । आहन्तुं प्रवृत्त रणसंनाहपिशुनं दशाननतूर्यम् ।।] अथ रावणोत्थानानन्तरं रणाय यः संना हस्तस्य ज्ञापकं दशाननस्य तूर्य पटह आहन्तुं प्रवृत्तं वादयितुमारब्धम् । किंभूतम् । भयाच्चलितेन पलायमानेनैरावणेन भज्यमानो यो बन्धनस्तम्भस्तेन दत्तः सुरेभ्यः संक्षोभो येन तत् । तदानीमन्योपरोधनिबन्धनत्वेनातिगम्भीरतया तादृशरवस्य कदाप्यसंभवादिति भावः ॥ ५॥ विमला-रावण के उठने के पश्चात् युद्ध के लिये सन्नद्ध होने की सूचना देने वाले, रावण के नगाड़े को बजाना आरम्भ कर दिया गया, जिसके गम्भीर शब्द को सुन कर भयभीत हो ( स्वर्ग में ) ऐरावत गज अपने बन्धनस्तम्भ को तोड़ ताड़ कर जो भगा तो देवता भी संक्षुब्ध हो गये ॥४५॥ अथ सप्तभिः स्कन्धकैरबलाभिः सह शयितानामपि रक्षसां शृङ्गारजित्वरं वीररसमाह रणसण्णापडिउद्धा गहिअजहासण्णपहरणा रअणिअरा। मीलन्तकण्ठलग्गं थोअ घेत्तण णिग्गा ज अइजणम् ॥४६॥ [ रणसंज्ञाप्रतिबुद्धा गृहीतयथासन्नप्रहरणा रजनीचराः। मीलत्कण्ठलग्नं स्तोकं गृहीत्वा निर्गता युवतिजनम् ।। ] रजनीचरा मीलन्नेव निद्रालस्येन मुद्रितनेत्र एव कण्ठलग्नः समराय गच्छतीति कृतालिङ्गनो यस्तं युवतिजनमपि स्तोकं गृहीत्वापि श्रित कभुजव्यापारादिनैव तत्सं. तोषाय प्रत्यालिङ्गय निर्गता मदने मा केऽपि गच्छन्त्वित्यहमहमिकया प्रस्थिता इति वीरोत्कर्षः सूचितः । अत एवोक्तं रणाय संज्ञा संकेतो वाद्यरवः परकृतकरादिव्यापारो वा तेन प्रतिबुद्धा जागरिताः सन्तो गृहीतं यथा निकटवर्तिखड्गमारभ्य लगुडपर्यन्तं प्रहरणमस्त्रं यस्तथाभूता इति सत्वरता सदसद्विचारवैमुख्येन जितकाशित्वं च सूचितम् ।।४।। विमला-युद्धसूचक नगाड़े की ध्वनि से जाग कर राक्षस, (आलस्यवश ) आँखों को मूंदे हुये ही आलिङ्गन करती हुई युवतियों का ( उनके सन्तोषार्थ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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