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________________ आश्वासः] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [५१६ विभीषणसैन्यमनस्कन्धे सैन्याने कृतं स्थापितम् । सुग्रीवादिभिरित्यर्थात् । कुत इत्यत आह-ज्ञातं निशाचराणां सारं बलं निगूढमन्त्रणा वा येन । एवं मायया निष्कलुषा निरुपद्रवा वा मायासु निष्कलुषा वा ये राक्षसास्तेषां युद्धप्रकारे प्रबुद्ध प्रवीणम् । यद्वा-मायया कपटेन निष्कलुषेण कपटव्यतिरेकेण च या युद्धगतिस्तत्रोभयत्र प्रवीणम् । एवं च--लङ्काया मार्गस्यान्तर्वतिदुरूहनानास्थानस्य निपुणं ज्ञातारं यत इति राजनीतिरुक्ता ॥३४॥ विमला-( सुग्रीवादिक ने ) विभीषण की सेना को सब से आगे किया, क्योंकि वह ( सेना) निशाचरों के बल एवं निगूढ मन्त्रणा को जानती थी, कपट एवं निष्कपट भाव से किये जाने वाले दोनों प्रकार के युद्ध की गति में प्रवीण थी तथा लङ्का के मार्ग को भी अच्छी तरह जानती थी ॥३४।। अब रामस्य युद्धग्रहणमाहसमरतुरिअस्स सुक कह मोत्तव्वं ति दूमियो सुग्गीवो। गहिाउहम्मि रामे सोअइ अ विहीसगो निसाअरवंसम् ॥३५॥ [ समरत्वरितस्य सुकृतं कथं मोक्तव्यमिति दुःखितः सुग्रीवः । गृहीतायुधे रामे शोचति च विभीषणो निशाचरवंशम् ॥] रामे गृहीतायुधे सति समरे त्वरितस्य स्वयमेव युयुत्सतो रामस्येत्यर्थात् । सुकृतं शोभनं कृतमुपकारो बालिवधादिरूपः कथं मोक्तव्यं प्रत्युपकारेण सदृशीकर्तव्यमिति कृत्वा सुग्रीवो दुःखितो रामस्यामोघशस्त्रतया रावणवधादेरित एव संभवादस्माक. मन्यथा सिद्धिः स्यादिति भावः । एवं विभीषणोऽपि निशाचरवंशं शोचनाविषयीकरोति सकलराक्षसक्षयध्रौव्यादिति भावः ॥३५॥ विमला-राम ने जिस समय आयुध ग्रहण किया उस समय सुग्रीव यह सोच कर दुःखित हुआ कि राम स्वयं युद्ध के लिये उद्यत हैं। इन्हीं से रावण-वध हो जायगा तो इन्होंने मेरे साथ वालिवधरूप जो उपकार किया है उसका बदला कैसे चुका सकूँगा। विभीषण भी निशाचर वंश के प्रति शोक करने लगा कि राम से सकल निशाचरों का संहार होना निश्चित है ॥३५॥ अथ धनुरास्फालनमाहअफालिए धन म्मि प्र खोहिअगिरिविहुप्रसाअरे रहुवइणा । कम्पिअघरपाआरा अङ्गक्खिवणविसमं व वेवइ लङ्का ॥३६॥ [ आस्फालिते धनुषि च क्षोभितगिरिविधुतसागरे रघुपतिना। कम्पितगृहप्राकाराङ्गक्षेपणविषममिव वेपते लङ्का ॥] क्षोभितः कम्पितो गिरिः सुवेलस्तेन विधुतस्तस्कम्पेन' भूमिकम्पाल्कम्पितः सागरो यस्माद् एवंभूते धनुषि रघुपतिनास्फालिते सति कम्पिता गृहाः प्राकाराश्च Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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