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________________ मारवासः ] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [५०१ [ मायामोहे गते श्रुते च प्लवगानां समरसंनाहरवे । जनकतनयया दृष्टं त्रिजटास्नेहानुरागभणितस्य फलम् ॥] इति श्रीप्रवरसेन विरचिते कालिदासकृते दशमुखवधे महाकाव्ये एकादश आश्वासः॥ जनकपुश्या सीत या त्रिजटायाः स्नेहो वात्सल्यं दया अनुरागः प्रीतिस्तत्पूर्वकस्य भणितस्य फलं तात्पर्यपर्यवसानं वा दृष्टम् । मत्प्रीत्या यथैवानया कथितं तथैव जातमिति ज्ञातमित्यर्थः । कुत्र सति । मायया जनिते मोहे गते प्लवगानां समरनिमित्ते संनाहस्य रवे संनयतां संनयतामित्यादिरूपे च श्रुते सति । द्वाभ्यां रामसतानिश्चयादिति भावः ॥१३७।। मायोत्तमाङ्गदशया रामदासप्रकाशिता । रामसेतुप्रदीपस्य संपूर्णकादशी शिखा ।। विमला-जनकपुत्री ने मायाजन्य मोह के नष्ट होने पर एवं वानरों की समरनिमित्तक संनद्ध होने की ध्वनि को सुनने पर त्रिजटा के द्वारा स्नेहानुरागपूर्वक कहे गये वचन का फल देख लिया (जैसा त्रिजटा ने मेरी प्रीति के कारण कहा था वैसा ही हुबा यह जान लिया ) ॥१३७॥ इस प्रकार श्रीप्रवरसेनविरचित कालिदासकृत दशमुखवध महाकाव्य में एकादश आश्वास की 'विमला' हिन्दी व्याख्या समाप्त हुई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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