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________________ सेतुबन्धम् [ एकादश उसकी ओर देखती और उसे भी अपनी गलती का आभास होता तो (क्या कहूँ,यह आसन मुझे अच्छा नहीं लगता इत्यादि) कोई न कोई गूढ बहाना बना कर भूमि पर बैठ जाता और अपनी मूर्खता पर स्वयम् ( मन में ) अपने को हंसता था॥२१॥ विप्रलम्भप्रकर्षमाहतहस गो अइभूमि जह ण विणिज्जन्तणं पित्राहि ण णाम्रो । ण अ णाऊण ण हसिओ ण अ हसिऊण अणुसोइउंण अतिण्णो ॥२१॥ [ तथा स गतोऽतिभूमि यथा न विनियन्त्रणं प्रियाभिन ज्ञातः । न च ज्ञात्वा न हसितो न च हसित्वानुशोचितुं न च तीर्णः ॥] स रावणस्तथा तेन प्रकारेणातिभूमि सीतां प्रत्यनुरागस्य परमकाष्ठां विरहवेदनातिमर्यादां वा गतो यथा प्रियाभिर्मन्दोदरीप्रभृतिभिर्विनियन्त्रणं सप्रकाशमव्याज वा सीतानुरागमूच्छितोऽयमिति न न ज्ञातः, अपि तु ज्ञात एव । ज्ञात्वा च अहो मूढोऽयमननुरक्तायामप्येवमनुरज्यतीत्यादिरूपेण न न हसितः, अपि तु हसित एव । हसित्वा च हा कष्टम्, ईदृशी विरहवेदनामुष्य, कथं वा जीवेत्, अस्माभिरपि तथा क्रियतां येन सीता भजत्येनमित्यादिप्रकारेणानुशोचितुमनुकम्पितुं न च न तीर्णः शकित:, अपि तु शकित एवेति । प्रकारान्तराचिकित्स्यत्वेन कादाचित्की मूर्छा सूचिता ॥२१॥ विमला-वह रावण इस प्रकार विरहवेदना की पराकाष्ठा को प्राप्त हो गया। उसकी प्रियाओं ने भी स्पष्ट रूप से यह जान लिया कि यह ( रावण ) सीता के प्रति अनुराग से मूच्छित है। यह जानकर उन्होंने उस (रावण) की हंसी भी उड़ायी कि यह कैसा मूर्ख है जो ऐसी स्त्री पर अनुराग रखता है जो इसे सर्वथा नहीं चाहतो। ऐसी हँसी उड़ाने पर भी उस ( रावण ) की दयनीय स्थिति पर उनके हृदय में रावण के प्रति सहानुभूति का उदय हो ही जाता ॥२१॥ अथ रावणस्य चिन्तामेवाहचिन्तेउं अ पउत्तो अवहोवासपसरन्तणीसासहअम् । दोसु णिमेऊण सम एक्कं आसण्णमुहकवोलेसु करम् ।।२२॥ [ चिन्तयितुं च प्रवृत्त उभयावकाशप्रसरनिःश्वासहतम् । द्वयोनियोज्य सममेकमासन्नमुखकपोलयोः करम् ॥] रावणश्चिन्तयितुं प्रवृत्तश्च । सीताप्राप्त्युपायमित्यर्थात् । किं कृत्वा। आसन्ने मुखकपोलस्य नानात्वेन तत्करस्य निकटवर्तिन्यनायासलभ्ये मुखे कपोले च द्वयोरेकं करं समं तुल्यवनिक्षिप्य । करं कीदृशम् । उभयावकाशे उभयपावें प्रसरद्भिर्नि: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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