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________________ सेतुबन्धम् आश्वासं विच्छिन्दन्नाह चन्द अरेण पोसे णिज्जइ मअणेण महुमएण अ सम अम् । दूरं दूरारूढो जुवईण पिएसु बहरसो अणुराओ ।।२।। इअं सिरिपवरसेणविरइए कालिदासकए दहमुहवहे महाकव्वे दसमो आसासओ ॥ [ चन्द्रकरण प्रदोषे नीयते मदनेन मधुमदेन च समम् । दूरं दूरारूढो युवतीनां प्रियेषु बहुरसोऽनुरागः॥] ____ इति श्रीप्रवरसेनविरचिते कालिदासकृते दशमुखवधे महाकाव्ये दशम आश्वासः । युवतीनां प्रियेषु बहुरसोऽनुरागः प्रदोषे रात्री चन्द्रक रेण मदनेन मधुमदेन च सममेकदैव दूरमारूढः परां वृद्धिमुपागतः सन् दूरं नीयते उत्कर्षकाष्ठां प्राप्यत इत्यर्थः । यद्वा मदनेन मधुम देन च समं सह चन्द्र करेण नीयत इति संबन्धः ।।८।। कामिनीकेलिदशया रामदासप्रकाशिता । रामसेतुप्रदीपस्य पूर्णाभूदशमी शिखा ।। विमला-रात्रि में मदन और मधुमद के साथ चन्द्रकिरण के द्वारा युवतियों का प्रियजन के प्रति बहरस अनुराग वृद्धि को प्राप्त होता हुआ उत्कर्ष की सीमा पर पहुंचा दिया गया ॥२॥ इस प्रकार श्रीप्रवरसेनविरचित कालीदासकृत दशमुखवध महाकाव्य में दशम आश्वास की 'विमला' हिन्दी व्याख्या समाप्त हुई ।। -***** Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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