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________________ ४१२ ] [ दशम त्पृथक्कृत्य किं च ध्रियमाणमरण्याश्रितं ग्रहीतुमपारयन्वेष्टयति तथा शशिकरा अपि लमोनिवहमुन्मूल्य ततः पृथक्कृत्यापि वृक्षतलमाश्रितां छायां स्रष्टुमपारयन्तः परितो वेष्टयन्तीत्यर्थः ॥ ४० ॥ ॥ सेतुबन्धम् विमला - ( जैसे कोई राजा आक्रमण कर शत्रु की सेना को खदेड़ कर शत्रु को उससे अलग कर देता है, फिर शत्रु भी जब भाग कर अरण्य का आश्रय ले लेता है तब उसे विनष्ट करने में असमर्थ वह केवल शत्रु के चारो ओर घेरा डा रहता है, वैसे ही ) चन्द्रमा की किरणों ने प्रचुर तिमिरसमूह को दूर कर वृक्षों की छाया को उसने पृथक् तो कर दिया, किन्तु छाया ने वृक्षतल का आश्रय ले लिया, अतएव वे उसका विनाश करने में असमर्थ हो केवल घेरे हुये हैं ॥४०॥ अथ कुमुदोत्फुल्लतामाह णवर करालेइ ससी मुहपरिहट्टणसमुससन्त बलउडम् । Mafsच्छिएक मेक्का विसअं फालेन्ति महुअर चिचअ 'कुम अम् ।।४१।। [ केवलं करालयति शशी मुखपरिघट्टनसमुच्छ्वसद्दलपुटम् । अप्रतीष्टैकैके विशदं पाटयन्ति मधुकरा एव कुमुदम् ॥ ] शशी कुमुदं केवलं करालयति सच्छिद्रयति मुखं दलानामीषद्विभागात् । किं तु विशदं स्पष्टं यथा स्यादेवं अप्रतीष्टैकैकेऽनपेक्षितपरस्परा मधुकरा एव पाटयन्ति । विकासयन्तीत्यर्थः । किंभूतम् । मुखे परिघट्टनेन करचरणाद्यभिघातेन समुच्छ्वसन्ति दलपुटानि यस्य तत् । स्वस्यैव मुखेन परिघट्टनादिति बा । हठादेव मधुसम्धीच्छया स्वभावतो वा मुखेनैव प्रवेश इति तन्मुखमुल्य प्रविशन्तीत्यर्थः । तथा च – मुकुलीकरणेन वत्मं प्रदर्शकत्वमात्रं चन्द्रस्य, विकासस्तु सहजसिद्धस्तत्काबानपेक्ष एव । मधुकरोत्कण्ठाधीन इत्यनेन परस्परानपेक्षया च मधूनामाधिक्वं क्याञ्जि ॥४१॥ विमला - चन्द्रमा ने केवल कुमुद के दलों को थोड़ा-सा खोल भर दिया, उसको पूर्ण विकसित करने का कार्य तो एक-दूसरे की अपेक्षा विना किये ही मधुपों ने कर दिया, जो ( हठात् ) कुमुद के अग्रभाग को चरणादि के अभिभा उद्वेल्लित कर प्रविष्ट हो गये ||४१ ॥ अथ सर्वत्र तमः शून्यतामाह पुसिओ णु णिरवसेसं समअं थोरकरपेल्लिनो णु विराओ । प्रोत्थम्रो ण समत्तो ससिणा पीओ णु णिद्दअं तमणिवहो ॥४२॥ [ प्रोन्छितो नु निरवशेषं समं स्थूलकर प्रेरितो नु विशीर्णः । अवस्तृतो नु समस्तः शशिना पीतो नु निर्दयं तमोनिवहः ॥ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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