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________________ ४०८ ] सेतुबन्धम् [ दशम विमला-चन्द्रमा का प्रकाश दिखायी पड़ा, जो अभी उदयाचल से छिपा हुआ, अतएव कृश है तथा जो तिमिर से मिलित होने के कारण कृष्ण शिला से मिलित सलिलशीकर के समान धवल है एवम् उससे प्राची दिशा थोड़ा-थोड़ा प्रकाशमय हो रही है ॥३१॥ अथ पूर्वदिक्प्रकाशमाहदीसइ जु अक्खअम्मि व महिलपरभाअससिमराहअतिमिरा। णिव्वडिअधूमहुअवहडसन्तसमुद्दसंणिहा पुवदिसा ॥३२॥ [ दृश्यते युगक्षय इव महीतलपरभागशशिकराहततिमिरा । निर्वलितधूमहुतवहदह्यमानसमुद्रसन्निभा पूर्वदिक् ॥] पूर्वा दिक् दृश्यते । कीदृशी। महीतलस्य परभाग एकदेशः । अर्थात्प्राच्यवच्छिन्न एव । तत्र शशिकरैराहतं स्पृष्टं ईषद्विघटितं वा तिमिरं यत्र तादृशी । तदवच्छेदेनैव तदानीं भूमेः शशिकरसंबन्धात् । उत्प्रेक्षते-युगक्षय इव निर्वलितः पृथग्भूतो धूमो यस्मादेतादृशो यो हुतवहः प्रलयाग्निस्तेन दह्यमानो यः समुद्रस्तत्संनिभा । तथा च रात्रेस्तमोमयतया प्रलयेन, शशिकराणां क्वचित्किचित्तिमिरसंबन्धादूम्रतया धूमेन, चन्द्रोदयकालीनलौहित्यस्य दहनेन, पूर्वदिशश्च तिमिरपूर्णत्वेन श्यामतया दह्यमानसमुद्रेण साम्यम् ॥३२॥ विमला-पूर्व दिशा में पृथिवी के एक भाग में चन्द्रमा के स्पर्श से तिमिर कुछ दूर हो चला, अतएव प्राची दिशा प्रलय काल में निर्धूम अग्नि से दह्यमान समुद्र के समान दिखायी दे रही है ॥३२॥ अथ चन्द्रकलोद्गममाह णवरि अ अच्छालोआ उअप्रगिरिक्खलिअबहलजोहाणिवहा। जामा पणतिमिरा मुद्धमिश्रङ्कपरिपण्डुला पुन्वदिसा ।।३३॥ [ मनन्तरं चाच्छालोका उदयगिरिस्खलितबहलज्योत्स्नानिबहा। जाता प्रनष्टतिमिरा मुग्धमृगाङ्कपरिपाण्डुरा पूर्वदिशा ॥] चन्द्रालोकदर्शनानन्तरं च पूर्वदिक् मुग्धेन बालेन लेखारूपेण मृगाङ्केन परिपापुरा माता। धूसरत्वे हेतुमाह-कीदृशी । उदयगिरौ स्खलितः प्रतिहतो बहलो निविडो ज्योत्स्नासमूहो यत्र सा सकलतेजसामनागमनाद्धसरत्वमिति भावः । अत एक किचिज्ज्योत्स्नासंबन्धात्प्रनष्टं तिमिरं यत्र । अत एव तिमिराभावादच्छो निमंस भालोको दर्शनं यस्याः । 'गूढमिअङ्क-' इति क्वचित्पाठः । तत्र गूढः संमुत्तः ॥३३॥ विमला-उदयगिरि पर निबिड ज्योत्स्ना-समूह के प्रतिहत होने के कारण ( अभी सकल तेज का भागमन न होने से ) पूर्व दिशा बाल मृगाङ्क से धूसर हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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