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________________ आश्वासः ] रामसेतुप्रदीप - विमलासमन्वितम् [ ४० १ तथा केसर के पक जाने के कारण मधुपों के हलके अभिघात से भी रज के झड़ने, अतएव भारी पड़ जाने से परस्पर विघटित हो रहे थे ।। १६ ।। अथ प्रतीच्या रविकान्तिच्छटामाह अवरविसावित्थिण्णो दीहम ऊहविसमप्पहासंघाओ । अभि व् दीसइ कालमुहविखसदिअसकड्ढणमग्गो ॥ १७॥ [ अपरदिशाविस्तीर्णो दीर्घ मयूखविषमप्रभा संघातः । रजोनिर्भर इव दृश्यते कालमुखक्षिप्तदिवसकर्षणमार्गः ॥ ] दीर्घाणां मयूखानां विषमा नतोन्नता या प्रभा रूपं तस्याः संघातः समूहः अपरा दिक् प्रतीची तत्र विस्तीर्णः प्रौढो दृश्यते, सर्वेषामेव तदा तत्र वर्तुली - भावात् । कीदृक् । रजः परागः तद्वन्निर्भरः पूर्णः । पिञ्जरत्वात् । क इव । कालो यमः संध्यासमयश्च तन्मुखादाक्षिप्तस्य दिवसस्य कर्षणमार्ग इव । कालेन कवलितस्य दिवसस्य निजबुद्धया रविणातिक्रम्य गृहीत्वाकृष्टस्य स्वेनैव सार्धं नीयमानस्य कर्षणमार्ग इत्यर्थः । अन्यत्रापि कस्यचिन्मुखादाकृष्टस्य भूम्यादौ कर्षणमार्गे दीर्घो विबमो रजो धूलिस्तन्निर्भरश्च भवतीति ध्वनिः ॥१७॥ विमला - दीर्घ किरणों की ऊँची-नीची प्रभा का समूह पश्चिम दिशा में विस्तीर्ण एवं रजपूर्ण-सा दिखायी दे रहा था, जो मानों सूर्य के द्वारा काल ( १ - सन्ध्यासमय, २ - यम ) के मुख से निकाले गये एवं साथ ले जाये जाते हुये दिवस का कर्षण - मार्ग है || १७ || अथ संध्यारागमाह - उद्घोवअत्तबिम्बे वेएण मह व दिणअरम्मि अइगए । उच्छलिआअवअम्बा संझाराअमिहिआ णहम्मि निहित्ता ॥ १८॥ [ ऊर्ध्वापवृत्तबिम्बे वेगेन महीमिव दिनकरेऽतिगते । उच्छलितातपाताना संध्यारागमेघिका नभसि निहिता ॥ ] संध्यारागविशिष्टा मेघिका स्वल्पमेघो नभसि निहिता लग्ना । उत्प्रेक्षतेकीदृशी । ऊर्ध्वादपवृत्तं स्खलितं बिम्बं यस्य तादृशि दिनकरे वेगेन महीमिवातिगतेऽपगते सत्युच्छलितेनाताम्रा । अन्यस्यापि वृक्षादितो भूमौ पतित्वा चूर्णितस्थ रुधिरादिकमूर्ध्वमेवोच्छलतीति ध्वनिः ॥ १८ ॥ विमला -- सन्ध्यारागयुक्त मेघिका ( स्वल्पमेघ ) नभ में व्याप्त हो गयी, जो मानों ऊपर से स्खलित रविबिम्ब के पृथिवी पर गिरने से उसके उछले हुये ( रुधिरसदृश ) आतप से लाल हुई है || १८ || अथ संध्यारागप्रतिमाह - अत्यसिहरन दीसह मेरुअडुग्घुट्ठकण अकद्दमभम्बो । वलमाणतुरिअरविरहपडिउट्ठि अधअवडो व संज्ञा राम्रो ॥ १६ ॥ २६ से० ब० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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