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________________ ३६४] सेतुबन्धम् [ दशम विमला-सूर्य भी ( किरणों के लिये अगम्य होने से ) सुवेल के जिन शिखरों को आक्रान्त नहीं कर सका था, ( कुञ्जों, कन्दराओं आदि की अधिकता के कारण ) वायु भी जिन्हें निर्भय हो स्पर्श नहीं कर सका था तथा ( रावण के त्रास से) विमानचारी देवलोक भी जिन्हें आक्रान्त नहीं कर सके थे, उन्हीं शिबरों को वानरों ने रौंद डाला ॥२॥ अथ लङ्कादर्शनमाहरिउणपरि ति सरोसं जणप्रसुआ एत्थ गिवसइ त्ति सहरिसम् । पहुणा लाहिमुही उहअरसन्वोलिआ विइण्णा विट्ठी ॥३॥ [रिपुनगरीति सरोष जनकसुतात्र निवसतीति सहर्षम् । प्रभुणा लङ्काभिमुखी उभयरसान्दोलिता विकीर्णा(वितीर्णा,वा)दृष्टिः॥] प्रभुणा रामेण लङ्कासं मुखी दृष्टिरापिकारस्य (?) रिपोरियं नगरीति सरोकं विकीर्णा विशेषतश्वाञ्चल्याहरायादिमती (?) क्षिप्ता। जनकसुता मत्प्रेयसी अत्रय पुरि निवसतीति सहर्ष वितीर्णा दत्ता । प्रसादोत्फुल्लत्वादिधर्मविशिष्टा समपितेति यावत् । अत एवोभयरसेन परस्परविरोधिना क्रोधोत्साहरूपेणान्दोलिताविभाव्यमानकमलदलशतव्यतिभेदवत्समयसोक्षम्येण स्वस्वचेष्टावैशिष्टयनरन्तर्यादेकमुपमृयापरेणावगाढुमारब्धाप्यनवगाहिता सत्प्रतिपक्षानुमानाभ्यां पक्ष इवेति क्रोधनहर्षरूप. भावसंधिः ॥३॥ विमला-श्रीरामचन्द्र ने लङ्का की भोर दृष्टिपात किया। उस समय उनकी दृष्टि ( परस्पर विरोधी ) उभयरस (क्रोध एवं उत्साह ) से आन्दोलित हो उठी; क्योंकि 'यही शत्रु की नगरी है' यह सोचकर उनके हृदय में रोष हुआ और 'यही वह नगरी है, जहाँ मेरी प्रेयसी निवास जनकसुता कर रही है' यह सोचकर प्रसन्नता एवं उत्फुल्लता हुई ।। ३ ।। रावणक्षोभमाहतो सुअरामागमणो पवअक्कन्तसिहरेण जामामरिसो। रोसेण गलितधीरो समं सुवेलेण कम्पिओ बहवअणो ॥४॥ [ ततः श्रुतरामागमनः प्लवगाक्रान्तशिखरेण जातामर्षः। रोषेण गलितधैर्यः समं सुवेलेन कम्पितो दशवदनः ।।] ततोऽनन्तरं प्लवगैराकान्तानि शिखराणि यस्य तथाभतेन सुवेलेन समं दशवदन: कम्पितः क्षोभात्, सुवेलोऽपि कपिचक्रमेण कम्पित इत्यर्थः । किं भूतो दशवदनः । श्रुतं रामस्यागमनं येन । तथा जातोऽमर्षः परोत्कर्षासहिष्णुता यस्येति रोषाभेदः । एवम् रोषेण गलितं धैर्य यस्य प्रस्वेदाचरस्पन्दननयना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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