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________________ ३५२] सेतुबन्धम् [ नवम करने से ) सिंहों के नखों में गजमुक्तायें लगी हैं और वे गजों के सिरों पर आरूढ हो गर्जन कर रहे हैं ॥२४॥ ओवठकोमलाई वहमाणं मेहविमलिअविमुक्काई। कप्पलआवसुआइअपवणुद्धअधवलसुआइ वणाई ॥ २५॥ [ अववर्षकोमलानि वहमानं मेघविदितविमुक्तानि । कल्पलताशोषितपवनोद्धृतधवलांशुकानि वनानि ॥] एवं वनानि वहमानम् । किंभूतानि । मेघेन विमर्दितानि अथ त्यक्तानि अत एवा. ववर्षेण बृष्टया कोमलानि जलसंपर्कात् । एवं कल्पलतायां शोषितानि पवनोद. तानि धवलान्यंशुकानि येषु । वृष्टया आकृतत्वात् कल्पलतासु वस्त्राणामपि सत्त्वात् । 'धअवडंसुआणि' इति पाठे ध्वजपटरूपाण्यंशुकानि येष्वित्यर्थः । वस्त्रं लतादी शोष्यत इति समाचार: ॥२५॥ विमला-यह ( सुवेल ) पर्वत ऐसे वनों को धारण किये हैं जिन्हें मेघ खूब स्पर्श कर छोड़ चुके हैं, अतएव वे जलसम्पर्क से कोमल (हरे-भरे ) हैं। यहां कल्पलताओं पर ( सूखने के लिये ) डाले गये धवल वस्त्र सूख चुके हैं और अब पवन से चंचल हो रहे हैं ॥२५॥ नदीप्रवाहमाह आरूढोअहिसलिले अद्धक्ख असरसविसमपासल्लदुमे। कुसुमभरिए वहन्तं फलिहअडुत्ताणपस्थिए ण इसोत्ते ।। २६ ॥ [ आरूढोदधिसलिलान्य?त्खातसरसविषमपार्श्वद्रुमाणि । कुसुमभृतानि वहन्तं स्फटिकतटोत्तानप्रस्थितानि नदीस्रोतांसि ।।] एवं नदीस्रोतांसि वहन्तम् । कीदृशानि । आरूढानि प्रविष्टानि अतिक्रान्तानि वा उदधिसलिलानि येषु यर्वा । उभयेषामुभयत्र प्राचुर्यादुभयथापि नदीनां प्रकर्षः । प्रथमे महत्त्वाद् द्वितीयेऽभिभावकत्वात् । एवमर्ध उत्खाता जलवेगापनीतभूमितया उत्पाटिताः सरसा जलसंपर्काद् विषमा मृत्तिकापगमादीषद्भुग्ना: पार्श्वद्रमा येषु तानि । अत एव तद्रमाणामेव कुसुमै तानि पूर्णानि । एवं स्फटिकतटे उत्तानानि अगभीराणि सन्ति प्रस्थितानि प्रसृतानि । तत्र खातं कतुमशक्तत्वादिति भावः । 'अगाधमतलस्पर्शमुत्तानं तद्विपर्यये' ॥२६॥ दिमला-यह पर्वत नदियों के ऐसे स्रोतों को धारण किये है जो तटवर्ती बृक्षों के कुसुमों से पूर्ण हैं, जिन्होंने समुद्रसलिल को अतिक्रान्त कर लिया है और जिनके तटवर्ती सरस (जलसम्पर्क से हरे-भरे ) वृक्ष जलधारा की ओर कुछ झुक गये हैं ( क्योंकि जल के वेग से वहाँ की मिट्टी बह चुकी है ) एवं जो ( प्रवाह) स्फटिकतट पर उथले हैं ( क्योंकि वह तट जलधारा से कट नहीं पाता है) ॥२६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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