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________________ ३३६ ] सेतुबन्धम् [ अष्टम विमला - वानरसेना ने समुद्र को पार कर लिया तथा ( सुवेल का अतिक्रमण करते समय रावण के द्वारा भी ) उसका विक्रम खण्डित नहीं हुआ, - ऐसा सुनकर राक्षस लोग रावण की कोमल अतएव भंगुर आज्ञा के पालक हुये - रावण की जो आज्ञा पहिले अभंगुर थी, अब वानरों के द्वारा समुद्र और सुवेल का अतिक्रमण होने से भंगुर हो गयी ||१०४ || अथ रावणस्य कृतान्तवशतामाह जाव अ महोअहिअडे श्रावासग्गहणवावडं कइसेण्णम् । ताव कअन्तेन को रावणसीसम्म वामहत्थकंसो ||१०५ ॥ [ यावच्च महोदधितटे आवासग्रहणव्यापृतं कपिसैन्यम् । तावत्कृतान्तेन कृतो रावणशीर्षे वामहस्तस्पर्शः ॥ ] कपिसैन्यं यावन्महोदधेस्तटे कूले आवासग्रहणे उत्तारस्थानात्मीकरणे व्यापृतम्, तावदेव कृतान्तेन यमेन रावणशीर्षे वामहस्तेन स्पर्शः कृतः । तथा च यत्र दक्षिणेनापि करेण स्पर्शो न संभावितः, तत्र वामेन कृत इति रावणस्य हठादेव मृत्युर्व्यञ्जितः || १०५ ॥ विमला - ज्यों ही वानरों की सेना समुद्र तट पर आवास ग्रहण करने में आसक्त हुई त्यों ही यम ने बायें हाथ से रावण का सिर स्पर्श किया ||१०५ ॥ अथ रामरावणयोः प्रतापमाह रामस्स रावणस्स अ लोआलो अन्तरालसरिसामण्णे । वड्ढन्तणिश्व अन्ते पाआरन्तर वहाइअम्मि आवे ॥१०६॥ जाणा लच्छी समं सोहा महिअस्स सागरस्स पसण्णा । तिअसजणि आणुराए उत्तिष्णम्मि मअलञ्छणम्मि व रामे ॥ १०७ ॥ इअ सिरिपवरसेणविरइए कालिदासकए दमुहवहे महाकव्वे अट्ठमो आसासओ । [ रामस्य रावणस्य च लोकालोकान्तरालनिस्सामान्ये | वर्धमान निवर्तमाने प्राकारान्तरद्विधायिते प्रतापे || जाता लक्ष्म्या समं शोभा मथितस्य सागरस्य प्रसन्ना । त्रिदशजनितानुरागे उत्तीर्णे मृगलाञ्छन इव रामे ॥ ] इति श्रीप्रवरसेनविरचिते कालिदासकृते दशमुखवधे महाकाव्येऽष्टम आश्वासः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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