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आश्वासः]
रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम्
[३१६
चिररुद्धं जलमवरोधकप्रान्तद्वयेन' वेगेन गच्छतीति प्रधावितपदार्थः। एवं धरणीधराणामन्तरितमन्तर्गतं सस्थितं यच्चन्दनवनं तेन ज्ञायमानमनुमी यमानं मलयशिखरखण्डं यत्र । तस्यैव चन्दनाधिष्ठानत्वात्कस्यापि विविच्य ग्रहणं नेति घटनाय निःसंधित्वमुक्तम् । एवं समुद्रस्य वीचिभिः प्रतिकूलं यथा स्यात्तथाहतास्ताडिताः, अत एव स्तोकमीषदुद्वेल्लिता उद्वेष्टिता मूलादारभ्य शिखापर्यन्तं द्रुमेषु लम्बमाना यत्र तम् । यद्वा तादृशद्रम एव लम्बमाना विपर्यस्यावस्थिता लता तत्र तम् । एवं विषमाणां नतोन्नत स्थितानां शिखराणामन्तरेण मध्याव. काशेन संवेल्लित: स्तोकजलनिर्गमाच्चञ्चलीभूतः सागरो यत्र तम् ॥६६-७०॥
विमला-इस प्रकार वानरों ने सकल भूतल से उखाड़ कर लाये गये पर्वतों से अत्यन्त विस्तृत एवम् उच्च सेतु का निर्माण किया, जिसके प्रतिबिम्ब पड़ने से ही मानों सागर के भीतर के जल का अर्धभाग श्याम हो रहा था। जो शिलायें विषम होने के कारण सेतु में न लगीं, अतएव समुद्र में गिर गयीं, उनके प्रबल अभिघात से मछलियों के पुच्छ भाग कट गये और उन्हीं से सर्यों के शरीर मध्य में छिन्न हो गये, अतएव उन्होंने उन शिलाओं को दृढ़ता से आवेष्टित कर विदीर्ण कर दिया। वानरों ने शैलोन्मूलन के समय शीघ्रतावश जिन गजों को गृहीत कर लिया था वे ( वानरों के अन्यमनस्क होने पर अवसर पाकर ) भाग खड़े हुये और सिंहों ने उनका पीछा किया। उखाड़ कर लाये गये पर्वतों के साथ ही उनके शिखर पर स्थित मेघ भी आ गये थे। वे ( मेघ ) सेतु पर लगे अन्य पर्वतों से टकराने के कारण पीडा से शब्द करते हुये जल को बाहर निकाल रहे थे। पार्श्व भाग में पतित वनगजों से बड़े-बड़े निर्झर अवरुद्ध हो गये, अतएव उनका जल दो भागों में विभक्त होकर दोनों ओर से वेगपूर्वक बहने लगा। (सेतु पर लगे ) पर्वतों के भीतर जो चन्दनवन स्थित था उससे यह अनुमान होता था कि यह मलय पर्वत का शिखरखण्ड है। वृक्षों के मूल भाग से लेकर ऊर्ध्व भाग तक लिपटी लतायें समुद्र की लहरों से बुरी तरह प्रताडित हो किंचित् काँप रही थीं तथा ऊँचे-नीचे शिखरों के मध्यावकाश से थोड़ा जल निकलने के कारण समुद्र चञ्चल हो रहा था।
इन पाँच स्कन्धकों की एक साथ अन्वय होने से 'कुलक' संज्ञा है ॥६६-७०।। अथ सुवेलदर्शनमाह
वित्थरइ सेउवन्धो विहुबइ धराहराहओ सलिल णिही। दिसुवेलुच्छङ्ग रसइ दिसाइगपरिवं कइसे णम् ॥७॥
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