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________________ ३०० ] सेतुबन्धम् [अष्टम विमला-नल ने जल से आर्द्र कर पर्वतों को परस्पर ऐसे कौशल से सम्बद्ध कर दिया कि उनमें जोड़ों के स्थानों का पता ही नहीं चल पाता था तथा क्षुभित समुद्र से बुरी तरह आहत होने पर भी वे एक-दूसरे से अलग नहीं हो सकते थे ।।३।। अथ नदीमुखनिरोधमाहपडिवहत्यिअसलिला वेलाअडपडिअमहिहरसमक्कन्ता । जे चिचअ अहिगममग्गा जाआ ते च्चे अणिग्गमा वि णईणम् ॥३३॥ [प्रतिपथप्रस्थितसलिला वेलातटपतितमहीधरसमाक्रान्ताः । य एवाभिगममार्गा जातास्त एव निर्गमा अपि नदीनाम् ॥] नदीनां य एवाभिगमस्य समुद्र प्रवेशस्य मार्गास्त एव निर्गमा अपि बहिर्गमनस्यापि मार्गा जाताः । त एव निर्गमाः । अत्र हेतुमाह-कीदृशाः । वेलातटपतितेन महीधरेण सेतावित्यर्थात् समाक्रान्ता अवरुद्धा अत एव प्रतिपथेन प्रतिस्रोतसा प्रस्थितं सलिलं येषां ते। तथा च नदीजलानि येनैव पथा समागतानि तेनैव परावृत्तानीति नदीमुखावरोधकत्वेन पर्वतानामुत्कर्षः सेतुस्थैर्य च सूचितम् ॥३३॥ विमला-वेला के किनारे सेतु पर पतित महीधरों से नदियों के मुख ( प्रवेशमार्ग ) अवरुद्ध हो गये; अतएव उनका जल जिस मार्ग से आया था उसी मार्ग से लौट गया ॥३३॥ पर्वतानां पतनस्वभावमाहणिवडन्ति तुङ्गसिहरा पवलविमुक्का अहोमहा वि जलवहे । भमिऊण मूलगरुपा जहेन उम्मूलि मा तहेम महिहरा ॥३४॥ [निपतन्ति तुङ्गशिखराः प्लवगविमुक्ता अधोमुखा अपि नलपथे। भ्रमित्वा मूलगुरुका यथैवोन्मूलिता तथैव महीधराः ।।] महीधरा यथैव येनैव प्रकारेणोर्ध्वशिखरा एवोन्मूलिता उत्पाटिता भ्रमित्वा विपरीत्य तेनैव प्रकारेणोर्ध्वशिखरा एव नलपथे निपतन्ति । किंभूताः । अधोमुखा अधःशिखराः सन्तः प्लवगेन विमुक्ताः सेतुसंगतिसौकर्याय क्षिप्ता अपि । भ्रमणे हेतुमाह-मूलेगुरुका महत्तरा अत एवाधोमुखा अप्यधोमूला जाता इत्यर्थः ॥३४॥ विमला-यद्यपि वानर पर्वतों का मुखभाग ( शिखर) नीचे और मूलभाग ऊपर कर उन्हें फेंकते थे तथापि मूलभाग की गुरुता के कारण वे उलट कर नल के सामने जिस ऊर्ध्वशिखर के रूप में उखाड़े गये थे उसी रूप में गिरते थे ॥३४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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