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________________ आश्वासः] रामसेतुप्रदीप-बिमलासमन्वितम् [२६६ विमला-समुद्र में पर्वताघात से ऊपर आये हुए मगरों ने ( सम्मुखगत ) चमरी गायों के पुच्छ भागों को बुरी तरह छिन्न कर दिया। कटकर फेन में ( श्वेत होने के कारण ) एकदम मिल जाने पर भी कटे हुए भागों से रुधिर बहते रहने से स्पष्ट परिलक्षित हो रहे थे ।।४।। गिरी सिद्धमिथुनत्यागमाहसिद्ध अणो भएण मञ्चइ लापराई सरअबिसेसजाअसे मोल्ल माहराई। गिरिसरिआमुहाइणासन्ति सासमाइ भमह महोअहिस्स. सलिलं बिसासआई॥४६॥ [ सिद्धजनो भयेन मुञ्चति लतागृहाणि सुरतविशेषजातस्वेदाधिराणि । गिरिसरिन्मुखानि नश्यन्ति शाश्वतानि भ्रमति महोदधेः सलिलं दिक्शतानि ।। सिद्धजनो भयेन गिरिक्षोभजेन लतागृहाणि मुञ्चति । पलायत इत्यर्थः । सुरतविशेषेण बन्धवैचित्र्याज्जातः स्वेदैरााण्यधराण्यधःस्थलानि येषां तानि । एतेन गिरीणां दुरवगाहत्वमुक्तम् । एवं शाश्वतानि सार्वदिकान्यपि गिरिनदीमुखानि नश्यन्ति समुद्रजलप्रवेशादेकीभावात् । यद्वा साश्रयाणि आश्रयो गिरिस्तत्सहितानि । नद्यो गिरिरपि निर्मज्य नश्यन्तीत्यर्थः । तथा महोदधेः सलिलं दिक्शतानि भ्रमति शैलाभिघातेनावर्तीभूतत्वात् । 'सुरअविसेसजाअहरिसोल्लआहराई' इति पाठे सुरतविशेषेण जातो हर्षो यत्र तादृशान्यार्द्राणि शीतलान्यधराण्यधःस्थलानि येषामिति बहुव्री हिगर्भः कर्मधारयः । 'देशं सोपद्रवं त्यजेत्' इति ध्वनिः ॥४६।। विमला-सिद्धजन ( देवयोनि विशेष ) सुरत विशेष से उत्पन्न स्वेद से आर्द्र अधःस्थल वाले लतागृतों को भय के मारे छोड़कर भाग गये । ( समुद्रजल के प्रवेश से ) शाश्वत गिरिनदी के मुख नष्ट हो गये, समुद्र का जल ( शैलाभिघात से आवर्तीभूत ) अनेक दिशाओं में घूम गया ॥४६॥ आवर्तपतितं गिरिगजमाह भमइ समुविखत्तकरं गअवइवारि अपवित्तप्परगाहम् । विहलुथविअकल हं विअडावत्तमु हमागअंगअजहम् ।।५।। [भ्रमति समुत्क्षिप्तकरं गजपतिवारितप्रवृत्तप्रग्राहम् ।। विह्वलोत्थापितकलभं विकटावर्तमुखमागतं गजयूथम् ।।] विकटावर्तस्य मुखं संमुखमागतं तत्र पतितं सद्गजयूथं भ्रमति । आवर्तानुसारेणेत्यर्थः । कीदृक् । समुत्क्षिप्त ऊर्ध्वं नीतः करः शुण्डा येन । अगाधजले शुण्डाया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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