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________________ रामसेतु प्रदीप - विमलासमन्वितम् आश्वासः ] महागिरिपतनमाह- आसीषितमणि अम्बा पत्थरित बिडन्तविसमणि अम्बा | दुमणिव होवरि हरि वरीतु सेला रविप्पहावरिहरिआ ||३८|| [ आशीविषमण्याताम्राः पर्यस्यन्ति विघटमान विषमनितम्बाः । द्रुमनिवहोपरि हरिता दरीषु शैला रविप्रभापरिहृताः ॥ ] [ २६३ शैलाः पर्यस्यन्ति समुद्रे निपत्य विशीर्यन्ति । किंभूताः । आशीविषाणां मणिभिराताम्राः । तेषामप्यागमनात् । पुनर्विघटमानाः संघट्टात्टन्तो विषमा विकटा नितम्बा येषां ते । पुनर्दुमनिवहानामुपरि हरिताः । रविरुचीनामप्यगम्यतया नित्यं छायासंबन्धात् । पुनदंरीषु रविप्रभाभिः परिहृता: । अतिगभीरत्वात् । विशेषणचतुष्टयेन विषमत्व पृथुत्वतुङ्गत्वविकटोदरत्वानि गिरीणामुक्तानि ||३८|| अत्र विमला - समुद्र में ऐसे-ऐसे पर्वत गिर कर विशीर्ण हो गये जो ( साथ आये हुए ) सर्पों की मणियों से लाल वर्ण के हो रहे थे तथा जिनके नितम्ब भाग टकराकर टूट गये थे एवम् ( सूर्य की किरणों के न पहुँचने से ) द्रुम - समूह के ऊपर जो हरे-भरे थे तथा जिनकी कन्दराओं में सूर्य की प्रभा का प्रवेश नहीं होता था ||३८|| शेषस्य क्षोभमाह ओवत्तं गिरिघाउ च्छित्तपाणिअम्मि धरिअं समुद्द े । वलिऊण भुञअवइणा कहं वि तुलग्गविसमा १ अं महिवेढम् ||३९ ॥ [ धृतं वेगापवृत्तं गिरिघातोत्क्षिप्त पानीये समुद्रे । वलित्वा भुजगपतिना कथमपि तुलाग्रविषमागतं महीवेष्टम् ॥ ] भुजगपतिना शेषेण बलित्वा तिर्यग्भूत्वा तुलाग्रेण काकतालीयसंवादेनाकस्माद्विषमागतं तिर्यग्भूतं महीवेष्टं कथमपि धृतम् । कीदृक् । गिरिघातेनोत्क्षिप्तं पानीयं यस्मात्तथाभूते समुद्रे सति वेगेन हठादपवृत्तमपवर्तितुमारब्धम् । आदिकर्मणि क्तः । तथा च जलानामुच्छलने यन्त्रणाभावाल्लघुत्वेन धरण्यास्तियंगुन्नतौ तद्धारणाय शेषोऽपि तिर्यग्मौलिरासीदिति भावः । निजभारस्य रक्षा कष्टेनापि कर्तव्येति ध्वनिः ||३६|| Jain Education International दिमला - पर्वतों के आघात से समुद्र का जल उछल कर जब आकाश को चला गया तब ( सन्तुलन बिगड़ जाने से ) पृथ्वीमण्डल का पलटना वेग से प्रारम्भ हुआ। शेषनाग ने उस टेढ़े हो गये पृथ्वीमण्डल को अपना सिर टेढ़ा कर किसी तरह धारण किया, इसे काकतालीय न्याय से ही हुआ समझा जाय ।। ३९ ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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