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________________ आश्वासः] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् नानासावितम [२२३ विमला-दर्प की उन्नति के हेतुभूत विन्ध्यनितम्बों तथा कम्पित 'नागवृक्ष वाले सह्यतटों से बोझिल हो वानरों ने महेन्द्रगिरि से लाये गये शिखरों को आकाश की ओर फेंक दिया और मलय के खण्ड को भूतल पर डाल दिया ।।५।। गिरिवानरयोराकारतौल्यमाह सिहराण भु असिरेहि कडाण अ मावि उरेहि पमाणम् । वणविवरेहि दरोणं तुलिमा परप्राण अगहत्थेहि गिरी॥६०॥ [शिखराणां भुजशिरोभिः कटकानां च मापितमुरोभिः प्रमाणम् । व्रणविवरैर्दरीणां तुलिताः प्लवगानामग्रहस्तैगिरयः ॥] प्लवगानां भुजशिरोभिरंसैः शिव रागामुरोभिः कटकानां च व्रणविवरैरङ्गगते. दरीणां प्रमाणं परिमाणं मापितं सदृशोकृतम् । अग्रहस्तैर्हस्तागिरयस्तुलिताः सदृशीकृताः । तथा च स्वसमानरूपत्वेनोत्थापयितुमध्यवसायः स्थिरीकृत इति भावः । वस्तुतस्तु तैस्तेषां प्रमागं मापितमित्यध्यवसायानन्तरमग्रहस्सैस्तुलिता उत्तोलिता इत्यर्थः ।।६।। विमला-वानरों ने दोनों करतलों से पर्वतों को उठाया। पर्वतों के शिखर और वानरों के कन्धे, पर्वतों के नितम्बभाग और वानरों के वक्षःस्थल, पर्वतों की कन्दरायें और वानरों के ( अङ्गगत ) विवर समान परिमाण के थे ॥६॥ हस्तिनामवस्थामाह पडिसन्तकण्ण पालं ओवत्तमुहं पसारिओलग्गकरम् । झाइ णु सोप्रणिमिल्लं वोसमइणु भमिणोसहं हत्यि उलम् ॥६१॥ [प्रतिशान्तकर्णतालमपवत्तमुखं प्रसारितावरुग्णकरम् । ध्यायति नु शोकनिमीलितं विश्राम्यति नु भ्रमितनिःसहं हस्तिकुलम् ॥] प्रति शान्त उपशमं प्राप्तः कर्णतालो यस्य । अपवृत्तं तिर्यकृतं मुखं येन । असारितोऽवरुग्ण : करो येन । एतादृशं हस्ति कुलं क्षोभन प्रियाविरहजेत वा शोकेन निमीलितं मुद्रित चक्षुः सद्ध यायति नु। कुत्र स्थातव्यं कुत्र गन्तव्यमिति । कुत्र वा लब्धव्या प्रिया कुत्र वा यूथं प्राप्तब्ध मति चिन्तावशात् । भ्रमितं प्रकृतसंभ्र. मेण दिशि विदिशि गतं सन्निःसहं विश्राम्यति नु। विश्राममाचरतीवेत्यर्थः । तथा च प्रकृतसंभ्रमाज्जायमानमेतद्रूपं करिणां संदेहमुखेन ध्यानविश्रामान्यतरजन्यत्वेनोत्प्रेक्षितम् ॥६१॥ विमला-हाथियों के कर्णताल का हिलना बन्द हो गया, मुंह फिर गया, टूटी एवं फटी सूंड पसर गयी, शोक से आँखें मुंद गयीं मानों वे ( शरणस्थान पाने अथवा प्रिया के मिलने के विषय में ) सोच रहे थे अथवा भ्रमित एवं निःसह हो विश्राम कर रहे थे ।।६१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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