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________________ १८४] सेतुबन्धम् [पञ्चम विमला-अग्नि-समृदाय में सलिल [ अस्तंगत ] अलक्ष्य हो गया, अग्निसमूह सहित उछलते हुये सलिल में नभ अलक्ष्य हो गया एवं सलिलनिवह से व्याप्त नभस्तल में दस दिशाओं का मण्डल अलक्ष्य हो गया ॥७४।। आवर्तमाह सिहिणा पविज्जन्ते आअन्तम्मि विस्थए जलणिवहे । जामा गिम्हविलम्बि अरविरहचक्क मसिणा समुद्दावत्ता ॥७॥ [शिखिना प्रताम्यमाने आवर्त्यमाने विस्तृते जलनिवहे। जाता ग्रीष्मविलम्बितरविरथचक्रमसृणाः समुद्रावर्ताः ॥] समुद्रावर्ता ग्रीष्मेण विलम्बितं विलम्बितगतीकृतं य द्रविरथचक्र तद्वन्मसृणा मन्दगतयो जाताः। ग्रीष्मे रविरथों मन्दं चलतीति लोकप्रतिपत्तिः । तस्मिन्सति शिखिना प्रथमं प्रताप्यमानेऽप्यावर्तमाने भ्राम्यमाणे जलनिवहे पश्चाद्विस्तृते सति । तथा च यथा यथा जलस्य ज्वालया बेलातिक्रमो जनितस्तथा तथा पूर्वप्रवृत्तानामेवावर्तानां विस्तारे सति बहुदेशव्यापकल्बाद्गतिमान्द्यमिव प्रतिपन्नमासीदित्यर्थः । क्षुद्रस्त्वावर्तस्त्वरया चलतीति वस्तुस्थितिः । आवर्तस्य वर्तुल त्वादुष्णत्वाच्च रविरथचक्र साम्यम् ।।७।। विमला-शरानल से प्रतप्त एवम् आवृत्त किये गये अतएव तत्पश्चात् विस्तृत जल राशि होने पर समुद्र के आवर्त, ग्रीष्म से बिलम्बित. रविरथचक्र के समान मन्दगति वाले हो गये ॥७५॥ मणिसंवलितमग्निमाह णि व्वडि अधूमणिवहो उद्धाइअमरगअप्पहामिलिअसिहो। विस्थिण्णम्मि समुद्दे से मालोमइलिओ व घोलइ जलणो ॥७६॥ [निर्वलितधूमनिवह उद्धावितमरकतप्रभामिलितशिखः । विस्तीर्णे समुद्र शेवालावमंलिन इव घूर्णते ज्वलनः ।।] ज्वलनः शेवालैरवमलिनः सर्वतः संवलितं इव धूर्णते । कुत्र समुद्रे । कीदृशि । विस्तीर्ण । अग्ने रधिव्यापकत्वलाभायेदमुक्तम् । शेवालच्छन्नत्वे हेतुमाह--जयलानः कीदृक् । निर्वलितः पृथग्भूतो धूमनिवहो यस्मात्तादृक् । एवमुद्धाविताभिर्मर र तप्रभाभिर्मिलिताः शिखा यस्य । तथा च बहिः संगते धूमेऽन्तःसंगतासु मरकतफान्तिषु वर्णसाम्येन शेवालत्वेनोत्प्रेक्षा ॥७६॥ " विमला-अग्नि से धूमराशि निकल रही थी और उसकी लपटें ऊपर उम्ती मरकतमणि की प्रभा से मिल रही थीं, अतएव वह विशाल सागर में शेवाल से आच्छन्न-सा चारों ओर घूम रहा था ।।६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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