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________________ आश्वासः ] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [१५१ स्यादित्य निष्टशङ्कित्वादित्यर्थः। प्रिया वियोगेन तनुका दुर्बलेति गणयन्नङ्गान्यामुञ्चति दुर्बलो भवतीत्यर्थः । तथा च संगीतसारे-'अभिलाषश्चिन्तास्मृतिगुणकथनोद्वेगसंलापाः । उन्मादोऽथ व्याधिर्जडता मृतिरिति दशात्र कामदशाः ॥८॥ विमला-सीता धीरा है ( अकस्मात् जीवन-त्याग नहीं करेगी) अतः राम स्वयम् आश्वस्त होते । सीता मदनपेलवा है-मदनवेदना सह नहीं सकती हैऐसा सोच कर स्वयं मूच्छित होते। प्रिया जीवित है, ऐसा सोचकर स्वयं जीवन धारण करते । वह वियोग से क्षीण हो गयी होगी-ऐसा सोच कर स्वयं दुर्बल हो रहे थे ॥८॥ अथ प्रभातकालोपक्रममाह उब्भडहरिणकलङ्को मलप्रलपापल्लवुव्वमन्तमऊहो । अरुणाहअविच्छाओ जाओ सुहदसणो णवर तस्स ससी ॥६॥ [उद्भटहरिणकलको मलयलतापल्लवोद्वमन्मयूखः । अरुणाहतविच्छायो जातः सुखदर्शनः केवलं तस्य शशी ॥] तस्य रामस्य केवलं शशी चन्द्र एव सुखदर्शनो जातः । विरहिणां शत्रुश्चन्द्रस्तस्य विपद्दर्शनं सुखहेतुरभूदन्येषां तु मादकत्वमेव स्थितमिति भावः । चन्द्रविपत्तिमेव प्रकटयति-कीदक । उद्भटो हरिणरूपः कलङ्को यस्य । प्रातःकालोपक्रमेण कान्तीनामभावात् । तहिं कान्तयः क्व गता इत्यत आह--मलयलतापल्लवेषूद्वमन्नुद्वान्तो भवन्मयूखो यस्य स तथा। प्रभाते विधुरोषधीषु कान्तिमर्पयतीति प्रसिद्धिः । वस्तुतस्तु मलयलतापल्लवेषूद्व म्यमान' उद्गीर्यमाणो मयूखो येन स तथेत्यर्थः । केचित्त निस्तेजस्त्वेन रात्रिनाशकालीनतया च मादकत्वाभावात्सुखदर्शनोऽभूदित्यर्थमाहुः ।। विमला-(प्रात:काल का आगम होने से ) श्रीराम को केवल चन्द्रमा को ही देख कर सुख प्राप्त हुआ (अन्य सभी उद्दीपक सामग्रियाँ पूर्ववत् ही विरहवेदनोत्तेजक रहीं) क्योंकि (विरहियों का शत्रु ) चन्द्रमा का कलङ्क अब ( कान्ति के अभाव से) अधिक स्पष्ट व्यक्त हो रहा था, उसकी किरणें मलयलता के पल्लवों में निहित हो रही थी तथा अरुण से आहत हो वह स्वयं मलिन हो रहा था ॥६॥ अथ प्रभातोपक्रमेण समुद्रक्षोभमाह जह जह णिसा समप्पा तह तह वेविरतरङ्गपडिमावडिअम् । किंकाव्यविमूढ़ घोडइ हिप्रअं क्व उग्रहिणो ससिबिम्बम् ॥१०॥ [यथा यथा निशा समाप्यते तथा तथा वेपमानतरङ्गप्रतिमापतितम् । किंकर्तव्यविमूढं घूर्णते हृदयमिवोदधेः शशिबिम्बम् ॥] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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