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________________ आश्वासः ] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [ १११ विमुक्तौ त्यक्तौ शेषो संक्रमोवृत्तभागौ य योस्तो। विमुक्तशेषावर्धान्तौ संक्रमघटकीभूतो मूलार्धभागौ यत्र तमिति समुद्रविशेषणम्, तद्यथा स्यादिति क्रियाविशेषणं वा। तथा च द्वयोरुत्सेधेनोपरिभागं दैर्येण शेषभागं च निरस्य संक्रमो घटनीय इत्यर्थः ।।६१॥ विमला-मैं ( सुग्रीव ) सुवेल गिरि और मलयगिरि को (ऊपर वाले शृङ्गादि भाग को हटा कर समता लाने के लिये) मध्य में काट कर, उन्हें उखाड़ कर, भुजाओं से घुमाकर--लम्बाई में पूर्व-पच्छिम के बजाय उत्तर-दक्षिण कर, ( लम्बे होने के कारण ) बढ़े हुए अन्तिम शेष भाग को निरस्त कर इधर के तट के ठीक सामने उधर से सुबेल गिरि को और उधर के तट के ठीक सामने इधर से मलयगिरि को अर्थात् दोनों को सामने-सामने रख कर समुद्र में सेतु बना देता हूँ ॥६१॥ अथाशयस्थं लङ्कोपमर्दमुद्धाटयन्नाह अह व सुवेलालग्गं पेच्छह प्रज्जेन भग्गरक्खसविडवम । सीआकिसलअसेसं मज्झ भुप्राठिअं लअं विन लङ्कम् ॥६२॥ [अथवा सुवेलालग्नां पश्यताद्यैव भग्नराक्षसविटपाम् । सीताकिसलयशेषां मम भुजाकृष्टां लतामिव लङ्काम् ॥] अथवा सुवेलालग्नां लतामिव लङ्कामद्यैव मम भुजाकृष्टां पश्यत । यथा सुवेलसंबद्धा काचिल्लता आकृष्यते तथा तत्सम्बद्धा लङ्कापि मया भुजेनैवात्राकर्षणीया ततः पारगमनव्यापृतिरपि न स्यादिति भावः । आकर्षणे सति लतायाः शाखापत्रभङ्गो भवतीत्याह-कीदृशीम् । भग्नाः पतिता राक्षसा एव विटपा यस्यास्ताम् । राक्षसा अपि हन्तव्या इत्यर्थः । एवं सीतारूपकिसलयावशेषाम् । पत्रान्तरप्रायराक्षसीनामपि निपातनादिति भावः । वस्तुतस्तु सुवेलमप्याकृष्यानयामि तदाकर्षणे तल्लग्नां लतामिव लङ्कामप्यानयामीति गूढो वाक्यार्थः ।।६२।। विमला-अथवा ( समुद्र पार करने की आवश्यकता ही नहीं) देखो, अभी राक्षसरूप पत्तों को भग्न करता, सीतारूप किसलय को ही अवशेष रखता हुआ मैं सुवेल गिरि से सम्बद्ध लंका को लता के समान खींच कर यहीं ला देता हूँ॥६२॥ अथाश्वासक विच्छित्तिमुखेन विशिष्य रावणवधमाहप्रोभग्गरक्खसदुमं गिहादसाणणमइन्दसुहसंचारम् । रामाणुराप्रमत्तो मलेमि लकं वणलि व वणगओ ॥६३।। इन सिरिपवरसेणविरइए कालिदासकर वहम हवहे महाकव्वे तइभो आसासमओ परिसमत्तो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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