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________________ ६४] सेतुबन्धम् । तृतीय प्रकारं चिन्तयन्नित्थमास्ते । तत्स्फूतौं मालिन्यमपि जह्यात्स्वकार्य च कुर्यादपकर्षमात्रमस्माकं स्यादिति भावः ।।३१।। विमला-जिस प्रकार समस्त वसुधा को उद्योतित करने वाले तथा समस्त जीवलोक में विस्तीर्यमाण प्रताप ( उष्णता ) वाले सूर्य में प्रभात वश आ पड़ी मलिनता ( प्रकाशाभाव ) अधिक देर नहीं ठहरती, उसी प्रकार अपनी कीति से समस्त वसुधा को उद्योतित करने वाले तथा समस्त जीवलोक में विस्तीर्यमाण प्रताप वाले सत्पुरुष में विधान ( प्रस्तुत कार्यानुकूल प्रकार ) के चिन्तन से आ पड़ी मलिनता अधिक देर नहीं ठहरती है ।।३१॥ उपकारिणामुपकार: कर्तव्य एवेत्याह सप्परिसपाडवहं पढमं जं राहवेण अम्हासु काम् । होज्ज व होज्ज व समं प्रम्हेहिं कपि कि उण प्रकीरन्तम् ।।३२।। [सत्पुरुषप्रकटपथं प्रथमं यद्राघवेणास्मासु कृतम् । भवेद्वा न भवेद्वा सममस्माभिः कृतमपि किं पुनरक्रियमाणम् ।। राघवेण प्रथमं यदुपकारस्वरूपमस्मासु कृतं तदस्माभी राघवे कृतमपि तत्कृतेन समं भवेद्वा न वा भवेत, किं पुनरक्रियमाणम् । तथा च राघवेण कृतो बालिवधरूप उपकारः कृतेनापि सीतोद्धारेणास्माभिः सदृशीकर्तुं न शक्यते, किं पुनरकृतेनेत्यर्थः । यत्किभूतम् । सत्पुरुष एव प्रकटः पन्था अवतरणमार्गो यस्य तत् । सत्पुरुषादेवोपकार आयातीत्यर्थः । यद्वा सत्पुरुषप्रकटपथ इत्यनुकरणीयम् । सत्पुरुषस्य प्रकटः पन्था यत्सत्पुरुषानुपकारस्वरूपेणैव पन्था चलतीत्यर्थः । प्राकृते लिङ्गवचनमतन्त्रमिति पथमिति नपुंसकनिर्देशः । राघवेण सत्पुरुषस्य वालिनः प्रकटो वधो यत्र तादृशं यत्कृतमित्यर्यो वा ॥३२॥ विमला-श्रीराम ने हम पर जो ( बालिवधरूप) उपकार किया है और उन जैसे सत्पुरुष का जो प्रकट मार्ग है अर्थात् हमारा अनुकरणीय है उसके बदले में हम सीता का उद्धार भी कर दें तो भी उस उपकार के बराबर हो या न हो ?-इसमें सन्देह ही है तो फिर पैसा नहीं करने के विषय में क्या कहा जाय ? ॥३२॥ रावणवधार्थमयमुपायः स तु दुष्कर इत्यत आह राहवपत्यिज्जन्तो उद्घो दीसिहइ केच्चिरं व बहमुहो। दूरन्तपेच्छिमन्वो सिहरपडन्तविप्रडासणि व्व वणदुमो ॥३३॥ [ राघवप्रार्थ्यमान ऊो द्रक्ष्यते कियच्चिरं वा दशमुखः । दूरान्तप्रेक्षितव्यः शिखरपतद्विकटानिरिव वनद्र मः॥] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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