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पंचम अधिकार
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अधिक प्रेम है । और जो भूतपूर्व वत्सपाल (अकृतपुण्य) का जीव देह हुआ था वही तुम हो ।
स्वर्ग में तुमने बहुत काल तक उत्तम२ सुख भोगे हैं और अपनी सुन्दरियोंके साथ२ जिन पूजादि शुभ कर्म भी बहुत किये हैं यही कारण है कि यहां भी तुम्हें वही अपूर्व सुख है और जो बलभद्रके दुष्ट सात पुत्र थे वे ये ही सब देवदत्त प्रभृति सात भाई हैं, सो उसी पूर्व वैरके सम्बन्धसे तुमसे ईर्षा करते हैं, तुम्हें मारना चाहते हैं पैडर में जो खजाने मिलते और विघ्न नष्ट होते हैं यह सब पात्रदानका फल है। बस यही तुम्हारी जीवनीका सार है । कुमार ! यह तो तुमने अच्छी तरह जान लिया कि- तुम्हें जो यह पूर्ण लक्ष्मीका और सौन्दर्यताका लाभ हुआ हैं वह केवल पूर्व जन्मके सुपात्र दान, व्रतमें उत्तम भावना और अर्हद्भगवानके नाम स्मरणका फल है ! इसलिये अब भी तुम्हें उचित है कि उपर्युक्त शुभ कर्मोंके द्वारा धर्मसेवन करो । देखो ! यही धर्म तुम्हारे अभिष्टका देनेवाला है ।
अन्त में कहना यह है कि
जब तक तुम संसार में रहो धर्म मत भूलो, धर्मका आश्रय लो, धर्म के द्वारा धर्म के अपूर्व सारको समझो, धर्मके लिए अभिवन्दना करते रहो, धर्मको छोड़कर किसी दूसरेकी सेवा मत करो, धर्मकी मूल करुणा है उसे सदा याद रखो, धर्मं में निश्चलित रहो और धर्म ही से यह प्रार्थना करो कि हे धर्म ! तू मेरी रक्षा कर ।
इति श्री सकलकीर्ति मुनिराज रचित धन्यकुमार चरित्र में धन्यकुमार के जन्मान्तरका वर्णन नाम पांचवां अधिकार समाप्त हुआ ||५||
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