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________________ श्री धन्यकुमार चरित्र इस प्रकार माताको समझाकर वह देव अपने स्थान पर चला गया और सुखपूर्वक रहने लगा। मृष्टदाना अपने भूतपूर्व पुत्रके वचन सुनकर बहुत आश्चर्यान्वित हुई, शोकको हृदयसे हटाया और विरक्त होकर फिर विचारने लगी देखो ! कितने आश्चर्यकी बात है जो थोडे ही दानादि शुभ कर्म करनेसे आज मेरा पुत्र कितने विभवका भोगनेवाला हुआ है तो कौन बुद्धिमान होगा जो व्रतादि शुभ आचरणोंके द्वारा ऐसे कामोंमें प्रवृत न होगा ? क्योंकि बार२ मानव जन्मका मिलना बड़ा ही दुर्लभ है । इस विचारके साथ ही मष्टदानाने सब गृह जंजाल छोड़ा और उसी वक्त अपने कल्याणके लिये जिनेश्वरी प्रव्रज्या (दोक्षा) स्वीकार की। बिचारी मृष्टदाना थी तो स्त्री ही न ? सो उसे सहसा ज्ञान कैसे हो सकता था ? यही कारण है कि उसने कुछ विचार न कर अज्ञानसे यह निदान कर लिया कि जन्मान्तरमें भी यह मेरा प्रेम-भाजन पुत्र हो और शक्त्यनुसार जीवनपर्यन्त तपश्चरण करने लगो । अन्त में समाधि आयुका भाग पूर्ण कर उसी स्वर्गमें देवी हुई । बलभद्रने भी देवको देखकर समझ लिया कि यह सब कल धर्मका है सो वह भी सब कुटुम्बादिको छोड़ कर दीक्षित हो गया और अन्त में समाधि पूर्वक जीवन पूर्ण कर तपश्चरणके प्रभावसे उसी जगह देव हुआ । __ मुनिराज धन्यकुमारसे कहते हैं-कुमार ! वही बलभद्र सौधर्म स्वर्गमें बहुत काल पर्यन्त अच्छे२ सुख भोगकर अन्तमें वहांसे चल कर तुम्हारा पिता धनपाल हुआ है। पृष्टदानाका जीव तुम्हारी माता है इसीसे उसका तुम्हारे पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001883
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages646
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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