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________________ पंचम अधिकार । ४७ उपाध्याय और साधु इन सबको मैं नमस्कार करता हूं वह इसीलिये कि ये महात्मा लोग अपने२ गुण मुझे वित्तीर्ण करें । इति श्री सकलकीर्ति मुनिराज रचित धन्यकुमार चरित्रमें अकृतपुण्यके दानका वर्णन नाम चतुर्थ अधिकार समाप्त हुआ ||४|| पंचम अधिकार धन्यकुमारके जन्मांतरका वर्णन हविचवृत्तपोधर्मानर्घ्यरत्नमदान्सताम् । त्रिजगत्स्वामिवन्द्याङ् घ्रीन्वदेऽहं परमेष्ठिनः ॥ दूसरे दिन अकृतपुण्य बची हुई खीर खाकर गायके बच्चों को चरानेके लिये वनमें चला गया । गरिष्ठ आहारके करनेसे उसे निद्रा आने लगी सो एक वृक्ष के नीचे गाढ निद्राराक्षसीके वश हो गया । उधर बच्चे उसे न देखकर स्वयं घर पर आ गये । अकृतपुण्यकी माता बच्चोंको देखकर विचारने लगी कि क्या कारण है जो बच्चे तो आ गये और पुत्र नहीं आया ? पुत्रकी चिन्तासे दुःखी होकर रोने लगी । (बलभद्रसे उसके ढूंढ़ने को कहा ।) मृष्टदाना के आग्रह से बलभद्र अपने नौकरोंको साथ लेकर उसके अन्वेषणको निकला । उधर जब अकृतपुण्यकी निद्रा खुली तो देखता है कि बच्चे नहीं हैं। बड़ा ही व्याकुल www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001883
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages646
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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