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सारांश कि पं० उदयलालजी कासलीवाल ये चार संस्कृत ग्रंथोंका अनुवाद उस समय कर गये थे जब दि० जैन समाज में बहुत कम साहित्य हिन्दी भाषामें प्रकट हुआ था । अत: दि० जैन समाज पर आपका उपकार कम नहीं है ।
इस धन्यकुमार चरित्रकी प्रथम आवृत्तिकी प्रस्तावना में पं० उदयलालजी कासलीवालने बताया है कि यह चरित्र कोई बनावटी चरित्र नहीं है । लेकिन हमारे अंतिम २४वें तीर्थंकर भगवान महावीर तथा उनके ही समय में होनेवाले महाराज श्रेणिकके समकालीन श्री धन्यकुमारजी थे जो प्रथम कैसे सामान्य पुरुष थे व फिर कैसे श्रीमान् हुये, कैसे २ कष्ट सहन किये, कैसे राजा हुये, कैसे मुनि दीक्षा ली व कैसे आप सर्वार्थसिद्धि गये यह सब वर्णन इस धन्यकुमार चरित्र में सात अधिकारों में है, जिसमें आपका पूर्व भव भी जाननेको मिलेगा !
यह चरित्र दानकी महिमाका वर्णन करनेवाला हैं व दान करने से ही धन्यकुमारजी कैसे भाग्यशाली हुए यह सब वर्णन इस चरित्र में मिलेगा । तथा इसकी प्रस्तावना में आपने ज्ञान दानकी भी अपूर्ण महिमा बताई है ।
आज पं० उदयलालजी इस संसार में नहीं हैं तो भी आपकी अनुवादित उपरोक्त चार ग्रन्थोंसे आपकी यादगार दि० जैन समाजमें चिरकाल तक कायम रहेगी ।
सुरत वीर सं० २५१८ ज्येष्ठ सुदी ५ ता. ५-६-९२
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निवेदक --
स्व. मूलचंद किसनदास कापडिया शैलेश डाह्याभाई कापडिया
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