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तृतीय अधिकार इतने में धनपति भी निर्विघ्न विदेश यात्रासे लौट आया । उसके देखते ही ब्रह्मचारी को बड़ा क्रोध आया । उसके मुहसे यही आह निकली कि मरा भी नहीं जो पीछा चला आया ?
इतना कहकर सेठके उपर दारूण रौद्र ध्यान करने से उसकी वेदना और भी बढ़ गई और इसी दशामें बड़े ही कष्टसे मर गया । मरकर निर्माल्य भक्षणके पापसे सातवें नरकमें गया । वहां अत्यन्त दुर्गन्धित उपपाद प्रदेशमें ऊपर पांव तथा नीचे मुख होकर उत्पन्न हुआ और मुहूर्त मात्रमें हडक संस्थान तथा कुत्सित शरीर धारण कर पृथ्वी पर गिरा। गिरते ही पृथ्वीके आवातसे पांचसौ योजन उछला और पीछा गिरा शरीर के खण्ड२ हो गये । *
जैसे वृक्षसे गिरकर पत्ता वायु वेगसे पृथ्वीपर लौटा करता है ठीक वही हालत इसको नरकमें थी। नरक बड़ा हो भयानक होता है, उसमें दुर्गन्धका अन्त नहीं एक साथ हजार बीछूओंके काटेकी तरह दुःख होता है, चारों ओर वनकी तरह कांटोसे संकीर्ण होता है।
जब यह वहां देखता है तो इसे भयानक लाल२ नेत्र किये हये और दारुण कम करनेवाले नारकी लोग दीख पड़े
और ठीक ऐसी ही सर्व दुःखोंकी स्थान, अस्पर्शनीय अति भयानक, नरकोंकी भूमि दीख पड़ी। तब यह विचारने लगा
मै कौन हूँ ? यहां क्योंकर कहांसे आया ? यह स्थान इतना भीषण क्यों है ? और ये भयंकर लोग कौन हैं ?
ॐ नारकियों शरीर पारेकी तरह होता हैं यह खण्ड २ होकर भी पोछा मिल जाता हैं ।
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