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________________ ३२ ] श्री धन्यकुमार चरित्र उसी वक्त उदय हो आता है । पापका फल बहुत बुरा होता है और पुण्यका अच्छा होता है । पाषीयोंको इसी भवमें नाना तरहके रोगादि तथा परलोकमें नरक दुःख भोगने पड़ते हैं और पुण्यात्माओंकी सब प्रशंसा करते हैं, बड़ी ही प्रतिष्ठा होतो है, जगतमें यश फैलता है और परभवमें भी उत्तम गति मिलती है । जो लोग देब गुरू और शास्त्र की पूजन करते हैं वे स्वर्ग में जाते हैं और जो पापी लोग निर्माल्यके खानेवाले हैं वे नरक में जाते हैं । उसके वंशका सर्वनाश हो जाता है, धन चला जाता है, नाना तरहके दारूण रोग भोगने पड़ते हैं । इतने पर भी छूटकारा न होकर अन्तमें उनके लिये नरक द्वार तैयार रहता है । ग्रन्थकार कहते हैं कि - हलाहल विष खा लेना बहुत ही अच्छा है फिर उससे उसी वख्त भले ही प्राण चले जाये परन्तु निर्माल्य खाना अच्छा नहीं । कारण इसके द्वारा अनन्त भव बिगड़ जाते हैं। इस बातको ध्यान में रखकर बुद्धिमानोंको कभी देव गुरू शास्त्रका निर्माल्य नहीं लेना चाहिए । किन्तु जैसे विषका उपयोग बुरा है उसी तरह निर्माल्य भी बुरा समझ कर छोड़ देना चाहिये । ब्रह्मचारी उसी भीषण अवस्थामें वही रहा करता था । इस वक्त उसकी और भी दशा बिगड़ गई थी । सब अंग प्रत्यंग कोढके मारे गले जा रहे थे देखने में बड़ो घृणा पैदा होती थी, आकृति भयानक हो गई थी, हरवक्त रौद्र भाव बने रहते थे । थोड़े में यों कहो कि वह खासे दुःख समुद्र में डूबा हुआ था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001883
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages646
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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