________________
२८ ]
श्रो धन्यकुमार चरित्र __ पुत्रका जन्म हाते हो मष्टदानाकी माताने भी परलोक यात्रा को । धन धान्यादि सब वस्तुएं नष्ट हो गई। साथ ही साथ पुण्य कर्म भी नष्ट हुआ।
सच कहा है-जब अभागा कुपुत्र गर्भ में आता है तब कुटुम्ब, धन, सुख और पुण्य सभी नष्ट हो जाते हैं । और घरमें दरिद्रताका वास हो जाता है। पापी पुत्रका पैदा होना सर्वथा बूरा हैं। समझो ! पुत्र, कलत्र आदि जितनी वस्तुएं जो दु:खकी कारण होती हैं वह सब पापका फल है, इस लिये जो बुद्धिमान हैं उन्हें अनिष्ट संयोगका प्रधान कारण पाप प्राण जाने पर भी नहीं करना चाहिये। प्रत्युत सदा धर्मका उपार्जन करना उचित है।
देखो ! इस बालकने पाप कर्मके सिवाय कभी पुण्य कर्म नहीं किया यही कारण है जो आज इसको यह दारूण दशा हुई । यही समझ मृष्टदानाने भी अपने अभागे पुत्रका नाम अकृत्य-पुण्य रक्खा । सब धन तो पहले नष्ट हो चुका था। जब बिचारी मृष्टदानाको पेट भरना तक मुश्किल हो गया तब वह कुछ उपाय न देख लाचार होकर दूसरे के घर का पोसना पोसकर बहुत दुःखके साथ अभागे पुत्रका पालन पोषण करने लगी।
उधर कामवृष्टिके मर जाने बाद पुण्योदयसे उसका नौकर वही सुकृतपुण्य भोगावतीका मालिक हो गया था। उस अवसरमें धन्यकुमारने अवधिज्ञानी मुनिराजको नमस्कार कर पूछा-भगवन् ! बालकने पूर्व जन्ममें ऐसा कौन पाप कर्म किया है और कैसे खोटे काम किये हैं जिससे आज इसे यह दशा देखनो पड़ी?
मुनिराज उसकी कथा कहने लगे जिसके सुनने मात्रसे चुरे कामोके करने में भय होता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org