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________________ m तृतीय अधिकार [२७ तृतीय अधिकार विश्वविघ्नहरान्वन्वे पञ्च, सत्परमेष्ठिनः । विश्वश्रीधर्मकर्तृ श्च, विश्वबन्धूनगुणार्णवान । धन्यकुमार मुनिराजके द्वारा धर्मोपदेश सुन कर बहुत खुशी हुआ और अपने योग्य व्रत नियमादि श्रद्धापूर्वक ग्रहण किये। बाद मुनिराजको सभक्ति अभिवन्दना कर हाथ जोड़कर पूछा नाथ ! आप तीन जगतके जीवोंका हित करनेवाले हैं । आपसे मुझे कुछ पूछना है। वह यह कि क्या कारण है जिससे मेरे भाई लोग तो मुझसे द्वष करते हैं और किस पुण्यसे माता प्रेम करती हैं ? तथा पद२ में मुझे बहुत संपत्ति मिलती है। क्या आप कृपा कर ये सब बातें मुझसे कहेंगे । ___ मुनिराज धन्यकुमार पर अनुग्रह कर उसके पूर्व जन्मको जीवनी सुनाने लगे-कुमार ! जरा अपने चित्तको कहीं जाने न देना, मैं तुम्हें पूर्व जन्मकी कथा कहता हूँ । क्योंकि उससे तुम्हारी हृदयमें संसार में भय उत्पन्न होगा, धर्ममें अभिरूचि होगी, पापसे डरोगे और दान व्रत नियमादिमें उत्तम विचार होंगे। तुम्हारी कथासे सर्व साधारणका भी उपकार हो सकेगा। भारतवर्ष-मगधदेश, उसके अन्तर्गत भोंगावतो नाम नगरी थी। उसके स्वामीका नाम कामवृष्टि था। उसकी भार्या मृष्टदामा थी। उनके घर में सुकृतपुण्य नामका एक नौकर था जब मृष्टदाना गर्भवती हुई तब ही उसके पापोदयसे कामवृष्टि मर गया। बाद वह गर्भ जैसे२ बढने लगा तेसेर सब लोग गर्भके प्रचण्ड पापसे धराशायी हुये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001883
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages646
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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