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________________ मवमो भवो ] वीइवयइ, सत्तमासपरियाए समणे निग्गंथे सणंकुमारमाहिंदाणं देवाणं तेउलेसं वोइवयइ, अट्टमासपरियाए समणे निग्गंथे बंभलोगलंतगाणं देवाणं तेओलेसं वीइवयइ, नवमासपरियाए समणे निग्गंथे महासुक्कसहस्साराणं देवाणं तेउलेसं वीइवयइ, दसमासपरियाए समणे निग्गंथे आरणच्चयाणं देवाणं तेउलेसं वीइवयइ, एक्कारसमासपरियाए समणे निग्गंथे गेवेज्जाणं देवाणं तेउलेसं वीइवयइ, वारसमासपरियाए समणे निग्गंथे अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं तेउलेसं वीइवयइ; तेणं परं सुक्के सक्काभिजाई भवित्ता सिझइ बज्झई मच्चइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ । एवं भो देवाणुप्पिया, य यावि परमत्थओ दुक्खसेवणाणरूवं संजमाणढाणं ति । इंदसम्मेण भणियं-भयवं, एवमेयं, इच्छामि अणुसदि। एत्थंतरम्मि पुवागएणव पणामपुव्वयं भणियं चित्तंगएण भयवं, के पुण पाणिणो कि कइप्पगारं किठिडयं वा कम्मं बंधति। भयवया भणियं-सोम, सण । निर्ग्रन्यः सौधर्मशानानां देवानां तेजोलेश्यां व्यतिव्र जति । सप्तमासपर्यायः श्रमणो निर्ग्रन्थः सनकमारमाहेन्द्राणां देवानां तेजोलेश्यां व्यतिव्रजति । •ष्टमासपर्यायः श्रमणो निर्ग्रन्थो ब्रह्म. लोकलान्तकानां देवानां तेजोलेश्यां व्यतिव्र जति । नवनासपर्या रः श्रमणो निर्ग्रन्थो महाशक्रसहसाराणां देवानां तेजोलेश्या व्यतिव्रजति । दशमासपर्यायः श्रमणो निर्ग्रन्थ आरणाच्यूतानां देवानां तेजोलेश्यां व्यतिव्रजति । एकादशमासपर्यायः श्रमणो निर्ग्रन्थो ग्रैवेयकानां देवानां तेजोलेश्यां व्यतिव्रजति । द्वादशमासपर्यायः श्रमणो निर्ग्रन्थोऽनुत्तरोपपातिकानां देवानां तेजोलेश्यां व्यतिव्रजति। ततः परं शुक्लः शुक्लाभिजातिभूत्वा सिध्यति बुध्यते मुच्यते सर्वदुःखानामन्तं करोति । एवं भो देवानुप्रिय ! न चापि परमार्थतो दुःखसेवनानुरूपं संयमानुष्ठानमिति । इन्द्रशर्मणा भणितम्भगवन् ! एवमेतद्, इच्छाम्यनुशास्तिम्। अत्रान्तरे पूर्वागतेनैव प्रणामपूर्वकं भणितं चित्रा देन- भगवन् ! के पुनः प्राणिनः कि कतिप्रकारं किंस्थितिक वा कर्म बध्नन्ति । भगवता भणितम्-सौम्य ! शृणु। सूर्य, ज्योतिषी देवों के इन्द्रों की, तथा ज्योतिष्क राजा की तेजोलेश्या का उल्लंघन करता है। जिसे श्रमण निर्ग्रन्थ हुए छह माह हो गये हैं वह सौधर्म और ईशान देवों की तेजोलेश्या का उल्लंघन करता है । जिसे श्रमण निर्ग्रन्थ हए सात माह हो गये हैं वह सनत्कुमार माहेन्द्र स्वर्ग के देवों की तेजोलेश्या का उल्लंघन करता है। जिसे श्रमण निर्ग्रन्थ हुए आठ माह हो गये हैं वह ब्रह्म और लान्तव स्वर्ग के देवों की तेजोलेश्या का उल्लंघन करता है । जिसे श्रमणनिर्ग्रन्थ हुए नव मास हो गये हैं बह महाशुक्र और सहस्रार स्वर्ग के देवों की तेजोलेश्या का उल्लंघन करता है। जिसे श्रमण निर्ग्रन्थ हुए दस माह हो गये हैं वह आरण और अच्युत स्वर्ग के देवों की तेजोलेश्या का उल्लंघन करता है। जिसे श्रमण निर्ग्रन्थ हुए ग्यारह माह हो गये हैं वह ग्रेवेयक देवों की तेजोलेश्या का उल्लंघन करता है। जिसे श्रमण निर्ग्रन्थ हुए बारह मास हुए हैं वह अनुत्तर और औपपातिक देवों की तेजोलेश्या का उल्लंघन करता है । उसके बाद वाला श्रमणनिम्रन्थ निर्मल शुक्ललेण्या वाला होकर सिद्धि को प्राप्त करता है, बोध को प्राप्त हो जाता है, मुक्त हो जाता है, समस्त दुःखों का अन्त करता है । इस प्रकार हे देवानुप्रिय ! संयम का पालन करना परमार्थ से दुःखसेवन करने के अनुरूप नहीं है।' इन्द्रशर्मा ने कहा'भगवन् ! यह सच है, आदेश की इच्छा करता हूँ।' इसी बीच मानो पहले से आये हुए चित्रांगद ने प्रणामपूर्वक कहा-'भगवन् ! कौन प्राणी किस स्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001882
Book TitleSamraicch Kaha Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1996
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size11 MB
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