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________________ ८६० गमहर भित्तिविरइयजलंतरयणोहदीवयसणाहं । तिसतकुसुम जलरुहाय रच्चियमणियडुच्छंगं ॥ १०१२॥ सेवागयसुरचारणवर विलयारद्ध महरसंगीयं । उज्झतागरुपरिमलघणवासियदिसिवहाभोयं ॥ १०१३॥ विहितवतेयदिष्यंत मुनियपरमत्थसुद्धभावाणं । चारणमणीग थुइरवनिसुणणसं मुइयसिद्धयणं ॥ १०१४।। धम्मचक्कट्टिस्स भयवओ तियसनाहनमियस्स । मणिवणो पडिमा विहूसियं उसहसामिम्स ||१०१५॥ तं पेच्छिऊण सम्मं मणिमयसोवाणविमलपंतीए । आरुहिऊण सतोसं भुवणगुरू वंदिओ तेण ॥ १०१६॥ वंदिऊण य निसण्णो एगदेसे । समागया तत्थ चारणमुणी विज्झाहरा सिद्धाय । वंदिओ हिं [ समराइच्चकहा गर्भगृहभित्तिविरचितज्वलद्रत्नौघदीपकसनाथम् । त्रिदशतरुकुसुमजलरुहप्रकराचित मणितटोत्सङ्गम् ॥१०१२॥ सेवागतसुरचारणवरवनितारब्धमधुर संगीतम् । दह्यमाना गुरुपरमलघनवासितदिक्पथाभोगम् ॥१०१३॥ विवधतपः तेजोदीप्यमानज्ञातपरमार्थशुद्ध भावानाम् । वारणमुनीनां स्तुतिरवनिःश्रवणसम्मुदितसिद्धजनम् ॥१०१४॥ धर्मवरचक्रवर्तिनो भगवतस्त्रिदशनाथनतस्य । मुनिपतेः प्रतिमया विभूषितं ऋषभस्वामिनः ।। १०१५।। तद् दृष्ट्वा सम्यग् मणिमय सोपानविमलपङ्क्त्या । आरुह्य सतोषं भुवनगुरुर्वन्दितस्तेन ।। १०१६ ॥ वन्दित्वा च निषण्ण एकदेशे । समागतास्तत्र चारणमुनयो विद्याधराः सिद्धाश्च । वन्दि - Jain Education International देदीप्यमान रत्नों से निर्मित दीपकों से युक्त गर्भगृह की दीवार बनाई गयी थी । पारिजात पुष्प और कमलों के समूह से मणिनिर्मित तट की गोद सजी हुई थी। सेवा के लिए आये हुए देव, चारण तथा सुन्दर स्त्रियों के द्वारा मधुर संगीत आरम्भ किया जा रहा था। जलाये हुए अगुरु की गुगन्ध से विस्तृत आकाश सुवासित हो रहा था । अनेक प्रकार के तपों के तेज से देदीप्यमान यथार्थ रूप से शुद्ध भावों के जाननेवाले चारणमुनियों की उत्तम स्तुतियों के सुनने से सिद्ध जन आनन्दित हो रहे थे । मणिनिर्मित सीढ़ियों की विमलपंक्ति से चढ़कर उस प्रतिमा के भलीभांति दर्शन कर समरादित्य ने तीनों लोकों के गुरु की वन्दना की ।। १००७-१०१६ ।। वन्दना कर एक स्थान पर बैठ गये। वहाँ पर चारणमुनि, विद्याधर और सिद्ध आये। उन्होंने भगवान् For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001882
Book TitleSamraicch Kaha Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1996
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size11 MB
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