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________________ तिओ सग्गो' अह सिहर-णिहे भुए सहस्सं विडवि-सरिच्छ-धणु-च्छडे वहंतो । घण-रण-कुदुओ पुणो वि बाणो पअलइ जंगम-विंझ-सेल-कप्पो ॥१॥ कुडिल-दिढ-कुअंड-दंड-संड-प्पणिहिअ-दिप्प-खुरप्प-दुप्पसज्झो । पअवि-हअ-कडप्प-कड्डिअं सो जलअ-गहीर-रवं रहं रुहेइ ॥२॥ भुअ-णिवह-विसंगिअंगओह-टुविअ-पिसंग-मणिप्पहंकुरेहि । अविरल-विडवग्ग-लग्ग-पुष्फो स हु बहु रेहइ सम्मलि-हुमो व्व ॥३॥ कसण-घण-सवत्त-गत्त-सोहो उवरि-समुद्धअ-पंडुराअवत्तो । णव-समुदिअ-चंद-मंडलाहो-गअ-रअणाअर-सण्णिहो विहाइ ॥४॥ [तृतीयः सर्गः] अथ शिखरनिभान् भुजान् सहस्रं विटपिसदृक्षधनुश्छटान् वहन् । घनरणकुतुकः पुनरपि बाणः प्राचलज्जङ्गमविन्ध्यशैलकल्पः ॥१॥ कुटिलदृढकोदण्डदण्डषण्डप्रणिहितदीप्रक्षुरप्रदुष्प्रसह्यः । प्रजविहयसमूहकृष्टं स जलदगभीररवं रथं रुरोह ॥२॥ भुजनिवहविषक्ताङ्गदौघस्थापितपिशङ्गमणिप्रभाङ्करैः । अविरलविटपाग्रलग्नपुष्पः स खलु बह्वराजत शाल्मलिद्रुम इव ॥३॥ कृष्णघनसपत्नगात्रशोभ उपरि समुद्धृतपाण्डरातपत्रः । नवसमुदितचन्द्रमण्डलाधोगतरत्नाकरसंनिभो व्यभात् ॥४॥ (३) सेळपंको. (१) ॥ उषानिरुद्ध तृतीयः सर्गः ॥ (२) विडहि. (४) घसण-घण (५) वंडराअवत्तो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001879
Book TitleUsaniruddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV M Kulkarni
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year1996
Total Pages178
LanguagePrakrit, Sanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size8 MB
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