SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ धणुह-द्धणि-तूर- णिस्सणार करि-बंहापरिबिहिआ भिसं । सहस च्चिअ सोणिआलअं भअ-संभंत जणं कुणंति तो ॥२०॥ पढमं पडह-स्सणेण तं पुण सेणोत्थ-पराअ - रासि । पडिरुं भइ वेरिणो पुरं स हु पच्छा पुदणाहि माहवो ॥२१॥ अह सो पडिहार- पालओ पमहेहिं परिवारिदो हरो । समरस्स करेइ पक्कमं गुह-लंबोदर-मंदि - दिओ ॥२२॥ इसि पम्फिडिएंदु - लेहिअं परिघोलंत - सुपव्व - णिण्णअं । भुअएहि दिणंत - तंडव - प्पढिलं बज्झइ ५ सो जडा - भरं ॥ २३ ॥ धनुर्ध्वनितूर्यनिःस्वनाः करिबृंहापरिबृंहिता भृशम् । सहसैव शोणितालयं भयसंभ्रान्तजनमकुर्वंस्तदा ||२०|| प्रथमं पटहस्वनेन तत्पुनः सेनोत्थपरागराशिना । प्रतिरुरोध वैरिणः पुरं स खलु पश्चात् पृतनाभिर्माधवः ॥२१॥ अथ स प्रतिहारपालकः प्रमथैः परिवारितो हरः । समरायाकरोत् प्रक्रमं गुहलम्बोदरनन्दिनन्दितः ॥२२॥ ईषत्प्रभ्रष्टेन्दुलेखिकं परिघूर्णमानसुपर्वनिम्नगम् । भुजगैर्दिनान्तताण्डवप्रशिथिलमबध्नात्स जयभरम् ॥२३॥ (२३) रूरणिस्सणा. Jain Education International उसाणिरुद्धं (२४) पटहस्सणेण. For Private & Personal Use Only (२५) पडिळं बज्जइ. www.jainelibrary.org.
SR No.001879
Book TitleUsaniruddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV M Kulkarni
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year1996
Total Pages178
LanguagePrakrit, Sanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy