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दो० -३८] योगसारः
३६७ [आत्मानं आत्मना यः जानाति यः परभावं त्यजति ।
स पामोति शिवपुरीगमनं जिनवरः एवं भणति ।।] पाठान्तर-१) ब-अप्पे. २) बम-परभाव. ३) अपझ-एउ.
अर्थ-जो आत्माको आत्मभावसे जानता है और जो परभावको छोड़ देता है, वह शिवपुरीको जाता है -ऐसा जिनवरने कहा है ॥ ३४ ॥
छह दवई जे जिण-कहिया णव पयत्थ जे तत्त । विवहारेण य उत्तिया ते जाणियहि पयत्त ॥ ३५ ॥ [षड् द्रव्याणि ये जिनकथिताः नव पदार्थाः यानि तत्त्वानि ।
व्यवहारेण च उक्तानि तानि जानीहि प्रयतः (सन् )॥] पाठान्तर-१) अ-दव्व, पझ-दव्यह. २) ब-ववहारे जिणउत्तिया. ३) अ-जाणीयहि एयत्थ, प-जाणीयहि पयत्थ, झ-पयत्यु
अर्थ-जिनभगवान्ने जो छह द्रव्य, नौ पदार्थ, और (सात) तत्त्व कहे हैं, वे व्यवहारनयसे कहे हैं, उनका प्रयत्नशील होकर ज्ञान प्राप्त करो ॥ ३५ ॥
सव्व अचेयणे जाणि जिय एक सचेयणु सारु । जो जाणेविणु परम-मुणि लहु पावई भवपारु ॥ ३६॥ [सर्वं अचेतनं जानीहि जीव एकः सचेतनः सारः।
यं ज्ञात्वा परममुनिः लघु प्रामोति भवपारम् ॥] पाठान्तर-१) झ-अचेयणि २) ब-पावहि.
अर्थ-जितने भी पदार्थ हैं वे सब अचेतन हैं; चेतन तो केवल एक जीव ही है, और वही सारभूत है । उसको जानकर परममुनि शीघ्र ही संसारसे पार होता है ।। ३६ ॥
जइ णिम्मलु अप्पा मुणहि छंडिवि सहु ववहारु । जिण-सामिउ एमई भणइ लहु पावई भवपारु ॥ ३७॥ [ यदि निर्मलं आत्मानं जानासि त्यक्त्वा सर्व व्यवहारम् ।
जिनस्वामी एवं भणति लघु प्राप्यते भवपारः॥] पाठान्तर-१) अ-एवई, प-एवइ, झ-सामीऊ एव. २) अपझ-पावहु.
अर्थ-सर्व व्यवहारको त्याग कर यदि तू निर्मल आत्माको जानेगा, तो तू संसारसे शीघ्र ही पार होगा-ऐसा जिनेन्द्रदेव कहते हैं ॥ ३७॥
जीवाजीवहँ भेउ जो जाणइ तिं जाणियउ । मोक्खहँ कारण एउ भणइ जोइ जोइहि भणिउँ ॥३८॥ [जीवाजीवयोः भेदं यः जानाति तेन ज्ञातम् । मोक्षस्य कारणं एतत् भण्यते योगिन् योगिभिः भणितम् ।।]
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