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योगीन्दुदेवविरचितः [अ० २, दोहा १४३इहु सिव-संगमु परिहरिवि गुरुवड कहि वि म जाहि । जे सिव-संगमि लीण णवि दुक्खु सहता वाहि ॥ १४२ ॥ इमं शिवसंगम परिहृत्य गुरुवर कापि मा गच्छ ।
ये शिवसंगमे लीना नैव दुःखं सहमानाः पश्य ॥ १४२ ॥ इहु इत्यादि । इहु इमं प्रत्यक्षीभूतं शिवसंगमं शिवसंसर्ग शिवशब्दवाच्योऽनन्तज्ञानादिखभावः स्वशुद्धात्मा तस्य रागादिरहितं संबन्धं परिहरिवि परिहत्य त्यक्त्वा गुरुवड हे तपोधन कहिं वि म जाहि शुद्धात्मभावनामतिपक्षभूते मिथ्यावरागादौ कापि गमनं मा कार्षीः। जे सिवसंगमि लीण णवि ये केचन विषयकषायाधीनतया शिवशब्दवाच्ये स्वशुद्धात्मनि लीनास्तन्मया न भवन्ति दुक्खु सहंता वाहि व्याकुलवलक्षणं दुःखं सहमानास्सन्तः पश्येति। अत्र स्वकीयदेहे निश्चयनयेन तिष्ठति योऽसौ केवलज्ञानाद्यनन्तगुणसहितः परमात्मा स एव शिवशब्दखेन सर्वत्र ज्ञातव्यो नान्यः कोऽपि शिवनामा व्याप्येको जगत्कर्तेति भावार्थः॥१४२।। अथ सम्यक्त्वदुर्लभवं दर्शयति
कालु अणाइ अणाइ जिउ भव-सायरु वि अणंतु । जीवि बिणि ण पत्ताइँ जिणु सामिउ सम्मत्तु ॥ १४३ ॥ कालः अनादिः अनादिः जीवः भवसागरोऽपि अनन्तः ।
जीवेन द्वे न प्राप्ते जिनः स्वामी सम्यक्त्वम् ॥ १४३ ॥ कालु इत्यादि । कालु अणाइ गतकालो अनादिः अणाइ जिउ जीवोऽप्यनादिः लीन होते हैं वे सब [दुःखं] दुःखको [सहमानाः] सहते हैं, ऐसा तू [पश्य] देख ।। भावार्थ-यह आत्मकल्याण प्रत्यक्षमें संसार-सागरके तैरनेका उपाय है, उसको छोडकर हे तपोधन, तू शुद्धात्माकी भावनाके शत्रु, जो मिथ्यात्व रागादि हैं उनमें कभी गमन मत कर, केवल आत्मस्वरूपमें मग्न रह । जो कोई अज्ञानी विषय-कषायके वश होकर शिवसंगम (निजभाव) में लीन नहीं रहते, उनको व्याकुलतारूप दुःख भव-वनमें सहता देख । संसारी जीव सभी व्याकुल हैं, दु:खरूप हैं, कोई सुखी नहीं है, एक शिवपद ही परम आनन्दका धाम है । जो अपने स्वभावमें निश्चयनयकर ठहरनेवाला केवलज्ञानादि अनंतगुण सहित परमात्मा उसीका नाम शिव है, ऐसा सब जगह जानना । अथवा निर्वाणका नाम शिव है, अन्य कोई शिव नामका पदार्थ नहीं हैं, जैसा कि नैयायिक वैशेषिकोंने जगतका कर्ता हर्ता कोई शिव माना है, ऐसा तू मत मान । तू अपने स्वरूपको अथवा केवलज्ञानियोंको अथवा मोक्षपदको शिव समझ । यही श्रीवीतरागदेवकी आज्ञा है ॥१४२।।
आगे सम्यग्दर्शनको दुर्लभ दिखलाते हैं-कालः अनादिः] काल भी अनादि है, [जीवो अनादिः] जीव भी अनादि है, और [भवसागरोऽपि] संसार-समुद्र भी [अनंतः] अनादि अनन्त है । लेकिन [जीवेन] इस जीवने [जिनः स्वामी सम्यक्त्वं] जिनराजस्वामी और सम्यक्त्व [द्वे]
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