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-दोहा ९४] परमात्मप्रकाशः
२१३ आत्मानं महान्तं मन्यते यः स परमार्थशब्दवाच्यं वीतरागपरमानन्दैकस्वभावं परमात्मानं न जानातीति तात्पर्यम् ॥९३॥ ग्रन्थेनात्मानं महान्तं मन्यमानः सन् परमार्थं कस्मान जानातीति चेत्
बुज्झतहँ परमत्थु जिय गुरु लहु अत्थि ण कोइ । जीवा सयल वि बंभु पर जेण वियाणइ सोइ ।। ९४ ॥ बुध्यमानानां परमार्थ जीव गुरुः लघुः अस्ति न कोऽपि ।
जीवाः सकला अपि ब्रह्म परं येन विजानाति सोऽपि ॥ ९४ ॥ बुध्यमानानाम् । कम् । परमार्थम्, हे जीव गुरुवं लघुलं वा नास्ति । कस्मानास्ति । जीवाः सर्वेऽपि परमब्रह्मस्वरूपाः । तदपि कस्मात् । येन कारणेन ब्रह्मशब्दवाच्यो मुक्तात्मा केवलज्ञानेन सर्वे जानाति यथा तथा निश्चयनयेन सोऽप्येको विवक्षितो जीवः संसारी सर्व जानातीत्यभिप्रायः॥९४॥ एवमेकचत्वारिंशत्सूत्रममितमहास्थलमध्ये परिग्रहपरित्यागव्याख्यानमुख्यतया सूत्राष्टकेन तृतीयमन्तरस्थलं समाप्तम् । अत ऊर्ध्वं त्रयोदशसूत्रपर्यन्तं शुद्धनिश्चयेन सर्वे जीवाः केवलज्ञानादिगुणैः समानास्तेन कारणेन षोडशवर्णिकासुवर्णवद्भेदो नास्तीति प्रतिपादयति।
तद्यथाआत्मज्ञानसे रहित है, यह निःसंदेह जानो ॥९३॥ ___ आगे शिष्य प्रश्न करता है, कि जो ग्रंथसे अपनेको महंत मानता है, वह परमार्थको क्यों नहीं जानता ? इसका समाधान आचार्य करते हैं-जीव] हे जीव, [परमार्थ] परमार्थको [बुध्यमानानां] समझनेवालोंके [कोऽपि] कोई जीव [गुरुः लघुः] बडा छोटा [न अस्ति] नहीं है, [सकला अपि] सभी [जीवाः] जीव [परब्रह्म परमब्रह्मस्वरूप हैं, [येन] क्योंकि निश्चयनयसे [सोऽपि] वह सम्यग्दृष्टि एक भी जीव [विजानाति] सबको जानता है | भावार्थ-जो परमार्थको नहीं जानता, वह परिग्रहसे तो गुरुता समझता है, और परिग्रहके न होनेसे लघुपना जानता है, यही भूल है । यद्यपि गुरुता लघुता कर्मके आवरणसे जीवोंमें पायी जाती है, तो भी शुद्धनयसे सब समान हैं, तथा ब्रह्म अर्थात् सिद्धपरमेष्ठी केवलज्ञानसे सबको जानते हैं, सबको देखते हैं, उसी प्रकार निश्चयनयसे सम्यग्दृष्टि सब जीवोंको शुद्धरूप ही देखता है ॥९४।। इस तरह इकतालीस दोहोंके महास्थलमें परिग्रह त्यागके व्याख्यानकी मुख्यतासे आठ दोहोंका तीसरा अंतरस्थल पूर्ण हुआ ।
आगे तेरह दोहोंतक शुद्ध निश्चयसे सब जीव केवलज्ञानादिगुणसे समान हैं, इसलिये सोलहवान (ताव) के सुवर्णकी तरह भेद नहीं है, सब जीव समान हैं, ऐसा निश्चय करते हैं । वह ऐसे हैं-यः] जो मुनि [रत्नत्रयस्य] रत्नत्रयकी [भक्तः] आराधना (सेवा) करनेवाला है, [तस्य] उसके [इदं लक्षणं] यह लक्षण [मन्यस्व] जानना कि [कस्यामपि कुड्यां] किसी शरीरमें जीव [तिष्ठतु] रहे, [सः] वह ज्ञानी [तस्य भेदं] उस जीवका भेद [न करोति] नहीं करता, अर्थात्
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