SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३९ दोहा २३ ] परमात्मप्रकाशः त्रयाराधका विवेकिन इत्यर्थः । तथाहि । जीवानां संसारावस्थायां गतेः सहकारिकारणभूताः कर्मनोकर्मपुद्गलाः कर्मनोकर्माभावात्सिद्धानां निःक्रियवं भवति पुद्गलस्कन्धानां तु कालाणुरूपं कालद्रव्यं गतेबहिरङ्गनिमित्तं भवति । अनेन किमुक्तं भवति । अविभागिव्यवहारकालसमयोत्पत्तौ मन्दगतिपरिणतपुद्गलपरमाणुः घटोत्पत्तौ कुम्भकारवद्भहिरङ्गनिमित्तेन व्यञ्जको व्यक्तिकारको भवति । कालद्रव्यं तु मृत्पिण्डवदुपादानकारणं भवति । तस्य तु पुद्गलपरमाणोर्मन्दगतिगमनकाले यद्यपि धर्मद्रव्यं सहकारिकारणमस्ति तथापि कालाणुरूपं निश्चयकालद्रव्यं च सहकारिकारणं भवति । सहकारिकारणानि तु बहून्यपि भवन्ति मत्स्यानां धर्मद्रव्ये विद्यमानेऽपि जलवत्, घटोत्पत्तौ कुम्भकारबहिरङ्गनिमित्तेऽपि चक्रचीवरादिवत् , जीवानां धर्मद्रव्ये विद्यमानेऽपि कर्मनोकर्मपुद्गला गतेः सहकारिकारणं, पुद्गलानां तु कालद्रव्यं गतेः सहकारिकारणम् । कुत्र भणितमास्ते इति चेत् । पश्चास्तिकायप्राभृते श्रीकुन्दकुन्दाचार्यदेवैः सक्रियनिःक्रियव्याख्यानइससे क्या अर्थ निकला ? यह निकला कि निश्चयकालकी पर्याय जो समयरूप व्यवहारकाल उसकी उत्पत्तिमें मंद गतिरूप परिणत हुआ अविभागी पुद्गलपरमाणु कारण होता है । समयरूप व्यवहारकालका उपादानकारण निश्चयकालद्रव्य है, उसीकी एक समयादि व्यवहारकालका मूलकारण निश्चयकालाणुरूप कालद्रव्य है, उसीकी एक समयादिक पर्याय है, पुद्गल परमाणुकी मंदगति बहिरंग निमित्तकारण है, उपादानकारण नहीं है, पुद्गल परमाणु आकाशके प्रदेशमें मंदगतिसे गमन करता है, यदि शीघ्र गतिसे चले तो एक समयमें चौदह राजू जाता है, जैसे घटपर्यायकी उत्पत्तिमें मूलकारण तो मिट्टीका डला है, और बहिरंगकारण कुम्हार है, वैसे समयपर्यायकी उत्पत्तिमें मूलकारण तो कालाणुरूप निश्चयकाल है, और बहिरंग निमित्तकारण पुद्गलपरमाणु है । पुद्गलपरमाणुकी मंदगतिरूप गमन समयमें यद्यपि धर्मद्रव्य सहकारी है, तो भी कालाणुरूप निश्चयकाल परमाणुकी मंदगतिका सहायी जानना । परमाणुके निमित्तसे तो कालका समयपर्याय प्रगट होता है, और कालकी सहायसे परमाणु मंदगति करता है । कोई प्रश्न करे कि गतिका सहकारी धर्म है, कालको क्यों कहा ? उसका समाधान यह है कि सहकारीकारण बहुत होते हैं, और उपादानकारण एक ही होता है, दूसरा द्रव्य नहीं होता, निज द्रव्य ही निज (अपने) गुण-पर्यायोंका मूल कारण है, और निमित्तकारण बहिरंगकारण तो बहुत होते हैं, इसमें कुछ दोष नहीं है । धर्मद्रव्य तो सबका ही गतिसहायी है, परंतु मछलियोंको गतिसहायी जल है, तथा घटकी उत्पत्तिमें बहिरंगनिमित्त कुम्हार है, तो भी दंड चक्र चीवरादिक ये भी अवश्य कारण हैं, इनके बिना घट नहीं होता, और जीवोंके धर्मद्रव्य गतिका सहायी विद्यमान है, तो भी कर्म नोकर्म पुद्गल सहकारीकारण हैं, इसी तरह पुद्गलको कालद्रव्य गति सहकारीकारण जानना । यहाँ कोई प्रश्न करे कि धर्मद्रव्य तो गतिका सहायी सब जगह कहा है, और कालद्रव्य वर्तनाका सहायी है, गति सहायी किस जगह कहा है ? उसका समाधान श्रीपंचास्तिकायमें कुन्दकुन्दाचार्यने क्रियावंत और अक्रियावंतके व्याख्यानमें कहा है-"जीवा पुग्गल" इत्यादि । इसका अर्थ ऐसा है कि जीव और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001876
Book TitleParmatmaprakasha and Yogsara
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorA N Upadhye
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2000
Total Pages550
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy