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नवमी विभागः
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इन्द्राः पल्योपमायुष्का देव्यस्तस्यार्धजीविकाः । एवं सर्वत्र देवीनां परिवारोऽपि पूर्ववत् ॥ ४६ कालाः पिशाचा वर्णेन सुरूपाः सौम्यदर्शनाः । ग्रीवाहस्तविराजन्ते मणिभूषण भासुरैः ४७ श्यामा भूताश्च वर्णेन चारवः प्रियदर्शनाः । आमेचकविराजन्ते चित्रभक्तिविलेपनाः ' ।। ४८ गन्धर्वाः कनकाभासाश्चित्रमाल्यविभूषिताः । सुमुखाश्च सुरूपाश्च सर्वेषां चित्तहारिणः ॥ ४९ प्रियङगुफलवर्णाश्च किंनरा नयनप्रियाः । सुरूपा सुमुखाश्चैते सुस्वरा हारभूषिताः ॥ ५० महास्कन्धभुजा भान्ति कालश्यामा महोरगाः । ओजस्विनः स्वरूपाश्च नानालंकारभूषिताः ॥ श्यामावदाता वर्णैश्च राक्षसा भीमदर्शनाः । महाशीर्षाः सरक्तोष्ठा भुजैः कनकभूषितैः ॥ ५२ बदनोरुभुजैर्भान्ति गौरा किंपुरुषा अपि । अतिचारुमुखाश्चैते शुभैर्मकुटमौलिभिः ॥ ५३ श्यामावदाता यक्षाश्च गम्भीराः सौम्यदर्शनाः । मानोन्मानयुता भान्ति रक्तपाणितलक्रमाः ॥ ५४ उक्तं च त्रयम् [ त्रि. सा. २५१-५३ ] किणकिपुरिसा य महोरगगंधग्वजक्खणामा य । रक्खसभूयपिसाया अट्ठविहा बेंतरा देवा ॥ ५
तथा देवियोंकी उससे आधी (३ पल्योपम ) होती है । इस प्रकारसे यह देवियोंकी आयुका क्रम सर्वत्र समझना चाहिये । देवियोंका परिवार भी पूर्वके समान जानना चाहिये ।। ४३-४६ ॥ इनमें पिशाच व्यन्तर वर्णकी अपेक्षा कृष्णवर्ण होते हुए भी सुन्दर और देखने में सौम्य होते हैं । वे मणिमय भूषणोंसे अलंकृत ग्रीवा और हाथोंसे सुशोभित रहते हैं ॥ ४७ ॥ भूत व्यन्तर भी वर्णकी अपेक्षा श्याम होते हुए सुन्दर एवं प्रियदर्शन होते हैं । वे विचित्र भक्तिविलेनसे संयुक्त होते हुए आमेचकोंसे ( मणिमिश्रित वर्णोंसे) विराजमान होते हैं ॥ ४८ ॥ सुवर्णके समान कान्तिमान् होकर विचित्र मालासे विभूषित गन्धर्व व्यन्तर देव सुन्दर मुख एवं उत्तम रूपसे संयुक्त होते हुए सबके चित्तको आकृष्ट करते हैं ॥ ४९ ॥ नेत्रोंको प्रिय लगनेवाले किंनर व्यन्तर देव प्रियंगु फलके समान वर्णवाले होते हैं । ये सुन्दर रूप एवं सुन्दर मुखसे संयुक्त होकर उत्तम स्वर और हारसे विभूषित होते हैं ॥ ५० ॥ महोरग व्यन्तर देव विशाल कन्धों एवं भुजाओंसे संयुक्त, काले या श्यामवर्ण, ओजस्वी, सुन्दर और नाना अलंकारोंसे विभूषित होते हुए शोभायमान होते हैं ।। ५१ ।। भयानक दिखनेवाले राक्षस व्यन्तर देव वर्णसे श्याम, निर्मल, विशाल शिरसे संयुक्त तथा लाल ओठोंसे सहित होते हुए सुवर्णसे विभूषित भुजाओंसे सुशोभित होते हैं ।। ५२ ।। गौरवर्ण किंपुरुष व्यन्तर भी मुख, जंघा एवं भुजाओंसे सुशोभित होते हैं । ये अतिशय सुन्दर मुखसे संयुक्त होकर उत्तम मुकुट और मौलिसे अलंकृत होते हैं ।। ५३ ।। निर्मल एवं श्याम वर्णवाले यक्ष व्यन्तर देव भी गम्भीर, सौम्यदर्शन, मान व उन्मानसे सहित तथा लाल हथेलियों व पैरोंसे युक्त होते हैं ।। ५४ ।। यहां तीन गाथायें कही गई हैं।
किंनर, किंपुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच इस तरह व्यन्तर देव
१ प विलेपनो ।
लो. २२
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