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________________ १६ प्रथमः पादः सस्वरव्यखनेन सह ओद् वा भवति । अव । ओ अरइ' अवयरइ। मोआसो अवयासो। अप । ओसरइ अवसरइ। ओसारिअं अवसारि। उत । ओ अषणं । ओ घणो । उ अवणं । उअधणो। क्वचिन्न भवति । अवगयं । अवसहो । उअ रवी। अब और अप उपसों में तथा विकल्प-अर्थबोधक उत अध्यय में (निपात ), अगले स्वर सहित व्यंजन के साथ, आदि स्थरका ओ विकल्प से होता है । उदा०अव-ओअरइ. 'अवयासो। अपः-ओसर इ. 'अवसारियं । उतः-ओवणं... "घणो । क्वचित् ( यही कहा हुआ वर्णान्तर ) नहीं होता है। उदा०-अवगयं "रबो । ऊच्चोपे ।। १७३ ।। उपशब्दे आदेः स्वरस्य परेण सस्वरव्यञ्जनेन सह ऊत् ओच्चादेशौ बा भवतः। ऊह"सि ओहसि उवहसि। ऊज्झाओ ओज्झाओ उवज्झाओ। ऊआसो ओआसो उववासो। उपशब्द में, अगले स्वर सहित व्यञ्जन के साथ, आदि स्वर को ऊ और ओ आदेश विकल्प से होते हैं । उदा-अहसि उववासो । __उभो निषण्णे ॥ १७४ ॥ निषण्णशब्दे आदेः स्वरस्य परेण सस्वरव्थलनेन सह उभ आदेशो वा भवति । णुमण्णो णिसण्णो । निषण्ण शब्द में, अगले स्वर सहित व्यञ्जन के साथ, आदि स्वर को उभ आदेश विकल्प से होता है । णुकण्णो, णिसण्णो । प्रावरणे अङ्ग्वाऊ ॥ १७५ ॥ प्रावरण शब्दे आदेः स्वरस्य परेण सस्वरव्यञ्जनेन सह अङगु आउ इत्येतावादेशौ भवतः । पंगुरणं पाऊरणं पावरणं । प्रावरण शब्द में, अगले स्वर सहित व्यञ्जन के साथ, आदि स्वरको अंगु और आउ ये आदेश विकल्प से होते हैं । उदा०--पंगुरणं पावरणं । स्वरादसंयुक्तस्यानादेः ।। १७६ ।। अधिकारोयम् । यदित ऊर्ध्वमनुक्रमिष्यामस्तत्स्वरात् परस्यासंयुक्तस्यानादेर्भवतीति वेदितव्यम् ।। यह ( सूत्र में से शब्द समूह ) अधिकार है। यहाँ से आगे हम अनुक्रम से जो १. क्रस अवतरित । अवकाश । २. क्रमसे-अपसरति । अपसारित । ३. क्रमसे-उतवनम् । उतधनः । ४. क्रमसे-अपगत । अपशब्द । उत रविः । ५. क्रमसे-उपहसित, उपाध्याय, उपवास । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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