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प्रथमः पादः
ऊत्सुभगमुसले वा ।। ११३ ॥ अनयोरादेरुत ऊद् वा भवति । सूहवो सुहओ। मूसलं मुसलं ।
सुभग और मुसल इन दो शब्दों में, आदि उ का ऊ विकल्प से होता है । उदा०-सूहवो 'मुपलं ।
अनुत्साहोत्सन्ने त्सच्छे ॥ ११४ ॥ उत्साहोत्सन्नवजिते शब्दे यौ त्सच्छौ तयोः परयोरादेहत ऊद् भवति । त्स। 'ऊसुओ। ऊसवो । ऊसित्तो। ऊसरइ । च्छ । उद्गताः शुकाः यस्मात् सः २ऊसुओ। 'ऊससइ। अनुत्साहोत्सन्न इति किम् । उच्छाहो । उच्छन्नो।
उत्साह और उत्सन्न शब्द छोड़कर, (अन्य) शब्दों में रहनेवाले जो त्स और च्छ, वे आगे होने पर, (उन शब्दों में) आदि उ का ऊ होता है। उदा.--त्स ( आगे होने पर )--ऊसुभो...ऊसरह । च्छ ( आगे होने पर )-जहाँ से शुक ( = तोते ) गए हुए हैं वह, ऊसुओ; ऊपसइ । उत्साह और उत्सन्न शब्द छोड़कर ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण इन दो शब्दों में, उ का ऊ नहीं होता है। उदा.--- ) उच्छाहो, उच्छन्नो।
लुकि दुरो वा ॥ ११५ ।। दुर् उपसर्गस्य रेफस्य लोपे सति उत ऊत्वं वा भवति । दूसहो' दुसहो । दूहवो दुहवो । लुकीति किम् । “दुस्सहो विरहो ।
दुर् उपसर्ग में से रेफ का ( =र् का ) लोप होने पर, उ का ऊ विकल्प से होता है । उदा .-दूसहो...दुहवो। ( दुर् में से ) रेफ का लोप होने पर ऐसा क्यो कहा है ? ( कारण यदि ऐसा लोप नहीं हुआ हो, तो उ का ऊ नहीं होता हैं । उदा०-) दुस्सहो विरहो।
ओत्संयोगे ॥ ११६ ॥ संयोगे परे आदेरुत औत्वं भवति । लोण्डं । मोण्डं । पोक्खरं। कोट्टिमं। पोत्थओ। लोद्धओ। मोत्था । मोग्गरो। पोग्गलं । कोण्ढो । कोन्तो । वोक्कन्तं । १. क्रम से-उत्सुक । उत्सव । उसिक्त । उत्सरति । २. उच्छुक !
३. उच्छ्वसिति । ४. क्रम से-दुःसह । दुभंग। ५. दुःसहः विरहः । ६. क्रम से-तुण्ड । मुण्ड । पुष्कर । कुट्टिम । पुस्तक । लुब्धक । मुस्ता । मुद्गर । पुद्गल । कुण्ठ । कुन्त । व्युत्क्रान्त ।
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