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प्रथमः पादः
विन्योरुत् ।। ६४ ॥ दिवशब्दे नावुपसर्गे च इत उद् भवति । दिवा' दुभत्तो । दुआई । दुविहो । दुरेहो । दुवयणं । वहुलाधिकारात् क्वचिद् विकल्पः । दुउणो बिउणो। दुइओ बिइओ। क्वचिन्न भवति । विजः दिओ। दिवरदः दिरओ। क्वचिद् ओत्वमपि। दोवयणं । नि । णुमज्जइ । णुमन्नो। क्वचिन्न भवति । निवडइ६ ।
द्वि शब्द में और नि उपसर्ग में, इ का उ होता है। उदा०--द्वि में :-दुमत्तो ... 'दुवयणं । बहुल का अधिकार होने से, क्वचित् (द्वि में से इ का उ ) विकल्प से होता है। उदा०-दुउणो... ...बि इओ। क्वचित् ( द्वि में से इ का उ ) नहीं होता है । उदा०-द्विजः .. .. 'दिरओ। क्वचित् (द्वि में से इका) ओ भी होता है । उदा०-दोवयणं । ( अब ) नि उपसर्ग में :---णुमज्जइ, णुमनो। क्वचित् (नि में से इ का उ ) नही होता है । उदा.---निवडइ ।
प्रवासीक्षौ ॥ १५ ॥ अनयोरादेरित उत्वं भवति । पावासुओ। उच्छू।
प्रवासि ( ) और इक्षु शब्दों में, आदि इ का उ होता है। उदा०--पावासुओ। उच्छु।
युधिष्ठिरे वा ॥ १६ ॥ युधिष्ठिर शब्दे आदेरित उत्वं वा भवति । जुहटिठलो जहिठिलो।
युधिष्ठिर शव्द में, आदि इ का उ विकल्प से होता है। उदा०-जट्ठिलो, जहिट्ठिलो।
ओच्च द्विधाकृगः ॥ १७ ॥ दिवधा शब्दे कृग्धातोः प्रयोगे इत ओत्वं चकारादुत्वं च भवति । दोहाकिज्जइ दुहाकिज्जइ। दोहाइअं दुहाइअं। कृग इति किम् । दिहा गयं । क्वचित् केवलस्यापि दुहा वि सो "सुरवहू सत्थो। । (द्विधा शब्द के आगे ) कृ धातु का प्रयोग/उपयोग होने पर, द्विधा शब्द में इ का ओ, और ( सूत्र में प्रयुक्त) चकार के कारण ( = च शब्द के कारण ) उ भी १. क्रम से :----हिमात्र । द्विजाति । द्विविध । २. द्विरेफ ।
३. द्विवचन । ४. क्रम से :--द्विगुण । द्वितीय । ५. क्रम से :-निमज्जति । निमग्न । ६. निपतति ।
७. क्रम से :-द्विधाक्रियते । द्विधाकृत । ८. द्विधागत।
९. द्विधा अपि सः सुर-वधू-साधः ।
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