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________________ प्राकृतव्याकरण-चतुर्थपाद श्लोक -( मेरे ) प्रियकरकी सिंह से जो तुलना की जाती है, उससे मेरा अभिमान खण्डित होता है ( = मुझे लाज आती है)। कारण सिंह रक्षकरहित हाथियों को मारता है; ( पर मेरा ) प्रियकर (तो) रक्षकों के साथ ( उन्हें ) मारता है। श्लोक ३-जीवित चञ्चल है; मरण निश्चित है; हे प्रियकर, क्यों रूठा जाय ? जिन दिनों में क्रोध है वे दिन सैकड़ों दिव्य वर्षों के समान होते हैं। होसहि-सूत्र ४३८८, ३८२ देखिए । श्लोक ४-( अपना ) मान नष्ट हो जाने पर, यदि शरीर नहीं तो भी देश को छोड़ दे। (परन्तु ) दुष्टों के करपल्लवों से दिखाए जाने, ( वहाँ ) मत घूमो। - यहाँ का वैसा ही रहा है। देसडा--सूत्र ४"४२९-४३० देखिए । भमिज्जसत्र ३.१७, १५९ देखिए ! यहाँ सूत्र १.८४ के अनुसार, 'मे' में से ए ह्रस्व हुआ; उसके स्थान पर इकार आके भमिज्ज रूप बना है। श्लोक ५-नमक ( लवण ) पानी में धुलता है; अरे दुष्टमेघ, मत गरज । कारण वह जलाई हुई झोपड़ी में पानी टपक रहा है; ( अन्दर ) सुन्दरी आज भीगेगी। __ यहाँ मा का म हआ है। अरि--सूत्र २२१७ देखिए । गज्जु--सूत्र ४.३८७ देखिए । अज्जु---अध के समान अव्यय भी अपभ्रंश भाषा में उकारान्त होते हैं। श्लोक ६--वैभव नष्ट होने पर बाँका ( और ) वैभव में मात्र नित्य जैसा ( जनसामान्य ) ऐसा चन्द्र---अन्य कोई भी नहीं--मेरे प्रियकर का किचित् अनुकरण करता है। ५.४११ श्लोक १-सच कहे तो कृपण मनुष्य न खाता भी है और न पीता भी है, न ( मन में ) गीला भी होता (पिघलता ) है और धर्म के लिए एक रुपया भी नहीं खर्च करता है; वह जानता भी नहीं कि यम का दूत एक क्षण में प्रभावी होगा। वेच्चइ-मराठी में वेचणे । रूअडउ, दूअडउ-सूत्र ४.४२९-४३० देखिए । पहुच्चइ-सूत्र ४३९० देखिए । अहवइ... ... खोडि-अथवा अच्छे वंश में जन्म लेने वालों का यह दोष ( खोडि ) नहीं । खोडि-मराठी में खोड, खोडी । श्लोक २-उस देश में जाए जहाँ प्रियकर का पता ( प्रमाण ) मिलेगा । यदि वह आएगा तो उसे लाया जाएगा। अन्यथा वहीं पर ( मेरा ) मरण होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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